संदीप कुमार सिंह 20 Jun 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7906 0 Hindi :: हिंदी
खिलौना जानकर दिल से वे किसी के खेलते हैं, ऊंची ख्वाब दिखाकर धरा पर पटक छोड़ देते हैं, बहाने भी बड़े_बड़े वे आजमाते हैं बेमतलब शताते यहां_ फितरत में उसके गंदी बातें_गंदी सोचें भरे होते हैं। काश हकीकत में अगर ये दिल खिलौना होता, तो कोई भी सचमुच में कभी भी तोड़ देता, पर दिल _दिल होता है कोई खिलौना तो नहीं:_ अगर सिर्फ़ ऐसा ही रहता तो ये हसी जहां न होता। भूल पर भूल वे करते आ रहें हैं ख़ुद को धोखा दे रहें हैं, उसे अपनों में ही आन आड़े आ गया है उलझ रहें हैं, पश्चाताप की आग में वे जलते भी दिखते हैं कभी_कभी_ खुद ही वे सारे खिलौना बनकर पल_पल बिखर रहें हैं। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....