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प्यार की कशमकश-बचपन का प्यार मिलना

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत प्यार, प्रेम, मोहब्बत, इश्क, कशमकश, उलझन, प्यार की उलझन, बचपन का प्यार, बचपन में प्यार, बचपन का प्यार मिलना 3947 0 Hindi :: हिंदी

आफताब एक होनहार 16 साल का लड़का जो कि 12 वीं की पढ़ाई कर के अपनी बुआ के घर छुट्टियां बिताने गया हुआ था. अप्रैल का महीना था. गर्मी अपने चरम पर पहुंचने को बेकरार थी. बुआ का गाँव खास विकसित नहीं था. गर्मी के मौसम मे सब का बसेरा बगिया में ही होता था. छुट्टियों मे तो बच्चे मानो उड़ते परिंदे हो जाते हैं. और अगर बगिया में जाने को मिल जाए तो सोने पे सुहागा. पेड़ पर चढ़ना, गुल्ली-डंडा खेलना, पोखर मे तैरने जाना और ना जाने कौन कौन से खेल खेलते हैं. बगिया से आम तोड़ना तो एक शौक होता है. बशर्ते पेड़ किसी और का हो. और पकड़े जाने पर पिटाई आम बात है आम के लिए. इन्ही चीजों का मज़ा लेने आफताब भी बुआ के घर गया था. सौभाग्य की बात थी कि अप्रैल में ही उसकी बुआ की बेटी की शादी भी थी. बुआ का लाडला जब बुआ से मिला तो बुआ फूली ना समा रही थीं. बुआ की बेटी आमना और आफताब बचपन से भाई-बहन कम और दोस्त ज्यादा थे. दोनों में बहुत अपनापन था. छोटे भाई से मिल कर आमना बहुत खुश थी. वो उसे गाँव में अपनी सहेलियों से मिलाने ले गयी. आफताब बहन से मिल कर तो खुश था लेकिन उसके साथ घूम कर उसे कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा था. क्योकि बहन की सहेलियों के बीच वो थोड़ा अच्छा महसूस नहीं कर रहा था. किसी तरह से बहाना बना कर वहाँ से अपनी जान छुड़ा कर भागा और सीधा जा कर बगिया में रुका. वहाँ लड़कों के साथ पेड़ पर चढ़ कर उनसे गाँव के बारे मे सुनने लगा और सो गया. शाम हो गयी और सभी उसे जगा के घर की ओर चल दिए. घर जा कर देखता है कि शादी की तैयारी में घर के सभी लोग लगे हुए हैं और उसके अब्बा उसका इंतज़ार कर रहे हैं. आते ही उसे काम दे दिया. सामान की पर्ची थमा कर बोले कि बाज़ार से ये सब सामान ले आओ. वहाँ के बाज़ार का उसे कुछ पता ना था. तो उसके साथ एक लड़के को भेजा गया. उस लड़के का नाम था फैज़ान. फैज़ान बहुत ही मस्त-मौला लड़का था. मस्ती तो जैसे उसके खून मे थी. हर समय हँसी-ठिठोली करने को कह दो तो उससे ज्यादा खुश लड़का गाँव मे कोई नहीं था. दोनों बाज़ार की ओर चल दिए. शादी के लिए सामान की पर्ची तो होती ही ऐसी है कि एक दुकान से सारा सामान नहीं मिलता. हर दुकान पर जा कर आफताब सामान लेता और फैज़ान मस्ती करता. कहने को तो साथ आया था लेकिन सामान एक ना उठाता. कहता कि मै तो केवल साथ देने आया हूँ. खरीदारी तुम्हें करनी है सो करो. लेकिन बातों में आफताब को ऐसे घुमा लेता की आफताब उसे कह भी ना पाता था सामान उठाने मे मदद करने को. बाज़ार मे खरीदारी करते हुए उन्हे शाम हो गयी. लौटते समय रास्ते में एक लड़की उन्हे बहुत परेशान दिखी. वो शायद कुछ खोज रही थी. फैज़ान उसे जानता था. वो उसे परेशान करने लग गया. आफताब ने कहा कि ऐसा ना करो. उसकी मदद कर दो. जो वो खोज रही है हम भी खोज देते हैं. लेकिन फैज़ान ने कहा मै ये करने के लिए नहीं आया हूँ तुम्हारे साथ. आफताब उसका जवाब सुन कर ये समझ गया कि अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा. उसने सारा सामान रखा और उससे पूछा कि वो क्या खोज रही है. लड़की ने बताया कि वो घर से पैसे ले कर बाज़ार सामान लेने निकली थी. रास्ते में एक आवारा कुत्ते ने उसे दौड़ा लिया और उससे बचने के लिए भागी तो उसके हाथ से पैसे कहीं गिर गए. अब वो यही सोच कर परेशान थी कि बिना सामान लिए घर वापस जाने पर उसे बहुत मार पड़ेगी. ऐसा बताते हुए वो आफताब के सामने रोने लगी. आफताब से ये देखा ना गया तो उसने कहा कि मै वो पैसे खोजने मे तुम्हारी मदद करता हूँ. दोनों मिल कर खोजेंगे तो जल्दी मिल जाएगा. ये सुन कर उस लड़की की जान मे जान आई. दोनों मिल कर पैसे खोजने लगे. ये देख कर फैज़ान बोला कि भाई अगर हमें घर जाने मे देर हुई तो हमे भी डांट सुननी पड़ेगी. लेकिन आफताब ने उसकी मदद करने को सोच लिया था तो रुका रहा. आधे घंटे बीत गए फिर जा कर एक पेड़ के पास उन्हे पैसे मिल गए. दोनों बहुत खुश हुए. लड़की ने आफताब का शुक्रिया किया और बाज़ार की तरफ जाने लगी. आफताब ने भी सामान उठाया और फैज़ान की तरफ बढ़ा. फैज़ान ने कहा अगर तुम्हारी वजह से डांट सुननी पड़ी तो कल से मै तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाऊंगा. दोनों घर पहुंचे तो वही हुआ जिसका डर था. दोनों से देर होने की वजह पूछी गयी तो उन्होने कुछ नहीं बताया. सब ने सोचा कि जरूर फैज़ान कहीं खेलने लग गया होगा इसलिए इन्हे देर हुई और फैज़ान को डाँट पड़ गयी. फैज़ान बहुत नाराज़ हुआ और बाद में आफताब से लड़ने लगा. आफताब ने उसे मनाने के लिए कहा कि कल मेरे साथ बाज़ार चलना. मै तुम्हें मिठाई खिलाउंगा. फैज़ान ने किसी तरह अपनी नाराज़गी शांत की और अपने घर चला गया. अगले दिन सुबह आफताब सो ही रहा था तभी फैज़ान आ पहुंचा और उसे जगा कर बोला मेरी मिठाई कहाँ है भाई? आफताब को याद आया कि उसने मिठाई खिलाने का वादा किया था. वो उठा और नहा-धोकर दोनों बाज़ार की ओर चल पड़े. बाज़ार पहुँच कर हलवाई की दुकान मे घुसे ही थे कि वही लड़की आफताब से टकरा गयी. आफताब तो उसे वहां देख कर जैसे खो ही गया. तभी पीछे से आवाज़ आई 200 ग्राम जलेबी और 100 ग्राम पेड़ा. ये आवाज़ थी फैज़ान की. उसे इससे मतलब नहीं था कि वहाँ आफताब और उस लड़की के बीच क्या हो रहा है? उसे तो बस अपनी मिठाई से मतलब था. लड़की ने भी मिठाई लिया और बाहर निकली. फैज़ान वहीं बैठ कर मिठाई खाने लगा. आफताब को उसका ध्यान नहीं रहा और उस लड़की के पीछे वो भी बाहर निकल गया और उसे रोक कर उसका नाम पूछा. वो बोली रेशमा. और आप? उसने बोला आफताब. फिर दोनों में बातें होने लगी और बातें करते हुए वो घर की ओर चल दिए. रेशमा बोली की मैंने आप को पहले तो नहीं देखा यहां. आफताब ने बताया कि वो अपनी बुआ की बेटी की शादी मे शहर से आया है. ऐसे ही बातें करते उनका घर जाने का सफर पूरा हुआ और आफताब घर के अंदर चला गया. रेशमा अपने घर चली गयी. घर पहुँच कर आफताब सब के काम मे हाथ बटाने लगा. थोड़ी देर ही हुई थी कि तभी फैज़ान आ टपका और गुस्से में बोला कि वहाँ दुकान मे मिठाई खिलाने ले जा कर तुम चुपके से भाग आए और मिठाई के पैसे मुझे देने पड़े. तुमने ऐसा दूसरी बार किया है आज. अब तो मै तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाऊंगा. मिठाई के पैसे मुझे वापस करो. आफताब ने उसे पैसे दे दिए और उसे बगिया में ले गया. वहां दोनों पेड़ पर बैठ गए और आफताब ने फैज़ान से रेशमा के बारे मे पूछा. फैज़ान आफताब की जुबान से रेशमा का नाम सुन कर सोच मे पड गया कि ये उसके बारे में क्यूँ पूछ रहा है? उसने कारण पूछा तो आफताब बोला कि वो मुझे अच्छी लगती है. मुझे उसके बारे में जितना भी तुम्हें मालूम है वो बताओ. फैज़ान कितना भी मस्ती करने वाला लड़का हो लेकिन इन कुछ दिनो में दोनों मे दोस्ती हो चुकी थी. उसने रेशमा के बारे में अपनी जानकारी से सब कुछ बता दिया. आफताब बोला किसी तरह हमारी दोस्ती करवा दो. फैज़ान मान गया और बोला कि मै तुम्हारी मदद करूंगा. 2 दिन बीत गए और शादी का दिन आ गया. सभी काम मे मशगूल थे और आफताब रेशमा के खयालों मे खोया हुआ था. मेहमान आने शुरू हो गए. घर में चहल पहल हो गयी. आफताब यूँ ही कोने में बैठा ख़यालों में खोया हुआ था तभी उसे कोई आवाज़ सुनाई दी और वो अपनी ख़यालों से असली दुनिया में लौटा. मुस्कुराहट भरी तिरछी निगाहें उसे बड़े प्यार से देखे जा रही थीं. आफताब बिल्कुल सन्न-सा रह गया. वो रेशमा थी. शादी में वो भी आई हुई थी. कुछ देर बाद दोनों को अकेले में बात करने का मौका मिल गया. आफताब ने पूछा कि तुमने उस दिन मुझे क्यूँ नहीं बताया कि तुम भी शादी में आने वाली हो. रेशमा बोली कि मैं आपको चौकाना चाहती थी इसीलिए नहीं बतायी. मुझे माफ कर दीजिए. आफताब बोला मुझे बहुत खुशी हुई तुम्हें अचानक से यहां देख कर. माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है. मुझे पहले से ना बताकर तुमने अच्छा किया. दोनों में बातें हो ही रही थीं कि तभी फैज़ान आफताब को खोजते हुए वहां आ पहुँचा. बोला कि तुम्हारे अब्बा तुम्हें बुला रहे हैं. आफताब उनसे मिलने चला गया और रेशमा अंदर औरतों के बीच चली गयी. अब्बा की बात सुन कर आफताब रेशमा से मिलने के लिए भागा चला आ रहा था. आने पर देखा कि वो वहां नहीं है. किसी से पूछ तो सकता नहीं था वर्ना ये बात सामने आ जाती कि उनके बीच प्रेम प्रसंग की शुरुआत हो चुकी है. दोनों ही एक-दूसरे को मन ही मन में बहुत पसंद करने लगे थे. लेकिन कहने को ना ही समय मिल पाया था और ना ही हिम्मत कर पाए थे. शादी हो गयी अगले दिन खाना पीना हुआ और सभी मेहमान धीरे-धीरे जाने लगे. लेकिन आफताब की मुलाकात रेशमा से अभी तक नहीं हो पायी थी. क्योकि वो जा चुकी थी. उसी गाँव की रहने वाली थी तो शादी मे आयी और शादी होने के बाद घर लौट गयी. एक दिन यूं ही मिले बिना बीत गया. आफताब का हाल बुरा हुआ जा रहा था. वो तो जैसे अपनी सुध-बुध खो बैठा था. तभी फैज़ान आया और उसके कान मे धीरे से बोला... भाई जल्दी बाहर चल. आफताब बात को समझ नहीं पाया कि फैज़ान ऐसा क्यूँ कह रहा है. वो उसके साथ बाहर निकला और बोला कि बताओ क्या बात है? फैज़ान बोला बात कुछ नहीं है बस बाज़ार चलना है. आफताब का उस समय बिल्कुल भी मन नही था तो उसने जाने से मना कर दिया. फैज़ान बोला सोच लो. तुम्हारा ही फायदा है. आफताब अब भी कुछ नहीं समझ पाया. फिर हार कर फैज़ान को ही बताना पड़ा कि अभी उसने रेशमा को बाज़ार की ओर जाते हुए देखा है. इतना सुनते ही आफताब के बदन मे मानो बिजली की लहर दौड़ गयी. फैज़ान वहीं खड़ा रहा और आफताब बाज़ार की ओर दौड़ने लगा. फैज़ान चिल्लाया भाई मेरे लिए तो रुक जा. दोनों बाज़ार पहुंचे तो रेशमा सामान ले कर लौट रही थी. आफताब को देख कर रेशमा बहुत खुश हुई. दोनों साथ चलने लगे और बातें करते हुए आगे बढ़ते रहे. आफताब ने कहा कि तुम्हारे साथ बात करने को बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता है. चलो थोड़ी देर बगिया में बैठ कर बातें करते हैं. रेशमा पहले तो मना करती रही लेकिन आफताब की गुजारिशों के आगे खुद को रोक नहीं पायी. दोनों बगिया में जा कर बैठ गए. आज दोनों का अपने मन की बात बताने का दिन था. दोनों ने इक़बाल-ए-जुर्म किया और अपने प्यार का इज़हार किया. फिर कुछ देर बातें कीं और घर की ओर चल दिए. कुछ दिनो तक दोनों मिल नहीं पाए. छुट्टियाँ बीत गयीं और आफताब वापस शहर आ गया. वापस आ कर अपनी आगे की पढ़ाई में लग गया. उसने इंजिनियरिंग की पढ़ाई की और सरकारी पद पर कार्यरत हो गया. 10 साल बीत चुके थे. अब उसके अब्बा-अम्मी उसकी शादी के लिए लड़की खोजने लगे. वो अपनी ज़िन्दगी में एक अच्छे मुकाम पर तो पहुँच चुका था लेकिन उसे किसी चीज़ की कमी हमेशा महसूस होती थी. वो क्या कमी थी उसे समझ नहीं आता था. काम मे लगे रहने की वजह से कुछ देर के लिए तो वो कमी को तलाशना भूल जाता था लेकिन रात को सोने से पहले एक बार जरूर सोचता था कि आखिर मेरे मन को शांति क्यूँ नहीं है? क्या वजह है इस बेचैनी की? वो इसी कशमकश मे रात का एक पहर गुजार देता था और फिर सो जाता था. सुबह उठ कर वही रोज की ड्यूटी. काम मे खो गया और अपनी कशमकश भूल गया. ऐसा ही चलता रहा फिर एक दिन बुआ का फोन आया. सब ने बुआ से बातें कीं. जब आफताब की अम्मी उसकी बुआ से बात कर रही थीं तो उन्होने उसकी शादी की चर्चा की और उसके लिए लड़की ना मिल पाने की बात भी बतायी. बुआ ने जब ये सुना तो बोली की उनकी नज़र मे एक लड़की है जो आफताब के लिए बिल्कुल सही जोड़ी रहेगी. अम्मी को सुन कर बहुत खुशी हुई. उन्होने कहा कि वहाँ बात किजिये. बुआ ने बात की. दोनों परिवार एक जगह इकट्ठे हुए. लड़के वालों को लड़की पसंद आ गयी और लड़की वालों को लड़का. लड़की का नाम था सुमायला. कुछ महीनों के बाद दोनों की शादी हो गयी. दोनों खुशहाल ज़िन्दगी जीने लगे. धीरे-धीरे 2 साल बीत गए. सुमायला तो किसी भी तरह खुशी खोज लेती थी लेकिन आफताब की कशमकश अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी. आज भी वो समझ नहीं पा रहा था कि इसका इलाज क्या है? यूँ ही एक दिन घर की अलमारी मे से वो कुछ जरूरी कागज खोज रहा था कि अचानक कुछ तसवीरें उसके सामने आ गिरी. उसने उन्हे उठा कर देखा तो चौंक गया. वो तस्वीरें रेशमा की थीं. उसकी अलमारी में वो तस्वीरें होने की वजह वो समझ नहीं पा रहा था कि अखिर सुमायला से रेशमा का क्या रिश्ता है. आखिर उसकी तस्वीरें यहां क्या कर रही हैं. अभी वो सोच ही रहा था कि तभी सुमायला आ गयी. आफताब ने उससे पूछा कि ये लड़की कौन है. सुमायला ने बताया कि ये उसकी बचपन की तस्वीरें हैं. आफताब ने जब ये सुना तो नाम के बारे मे पूछा तब उसे जवाब मिला कि उसका नाम तो सुमायला है लेकिन सब उसे रेशमा बुलाते थे. आफताब की खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि उसके बचपन के प्यार से ही उसकी शादी हुई है और उसे अभी तक इस बात का पता नहीं था. फिर उसने सुमायला को वो बात याद दिलायी. दोनों को 12 साल पहले की बात याद आ गयी. दोनों की आँखों से खुशी के आंसू फूट पड़े. खुशी ऐसी कि अनजाने मे उन्हे अपना खोया हुआ प्यार इतने साल बाद मिल गया था. उस दिन से आफताब के ज़िन्दगी की कशमकश कही खो गयी क्योकि सुमायला ही उसकी कशमकश की वजह थी.

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