Meena ahirwar 28 May 2023 कविताएँ दुःखद कविता- दुःख # काली लड़की का दर्द# 7485 0 Hindi :: हिंदी
रंग-रुप देख क्यों जग हँसता, हर दिन रोज़ नये ताने कस्ता। कुदरत ने मुझे बनाया जैसा, फ़िर क्यों घृणा करता जग मुझसे। मना काली हूँ पर मेरा क्या कसूर , मैं भी इंसान हूँ मुझे चोट लगती है । हर दिन टूट जाती हूँ जब , काली-काली बोल चिड़ाते हैं सब। खामोस सहमी सी घर के , किसी कोने में आँसू बहाया करती हूँ। जैसा बनाया बैसी हूँ, फ़िर क्यों जग ताने कसते। उद्देश्य- इस कविता का मूल उद्देश्य है,की किसी व्यक्ति की भावना को ढेस नही पहुँचना चाहिए। और ना ही किसी व्यक्ति को उसके रंग-रुप के लिए ताने देना चाहिए, जो जैसा है वह कुदरत की देन है। मीना अहिरवार, जिला- छतरपुर (म .प्र) ।