Nisha Dhiman 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक 17242 1 5 Hindi :: हिंदी
आरंभ हो चुका है अंत का अनंत में जो व्याप्त है, शंखनाद उल्लास है जगी ये कैसी प्यास है, भाव विभोर हो चुकी हृदय में उठती टीस सी, बस नयन छलक रहे एक समर्पण भाव है।। हूं मैं नहीं, भ्रम टूटता मेरा जो सब कुछ है, वहीं पर्याप्त है कण,कण बांध रहा इस पूरे ब्रह्मांड को, सीप में ही मोती का हो रहा विस्तार है, भोर में उठ रही लहर एक नये प्रकाश की, आदि है, अनंत हैं बस वही तो सर्वशक्तिमान है।।
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