संदीप कुमार सिंह 28 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 9976 0 Hindi :: हिंदी
(सोरठा छंद) जीना है तो सीख,मेरे हमदम सब कला। लेना कभी न भीख,देने वाला खुद बनो।। करिए यहां कमाल,हैरत सब जन ही करे। ऐसे हों जो लाल,मरकर भी वो ना मरे।। करिए जान निसार,सबसे बढ़कर है वतन। आँखों में हो प्यार,करिए लाखों अब जतन।। करना नहीं गुनाह,धर्म राह हम सब चलें। मिलती रहे वाह,वाह वाह सब ही करे।। अपनी मिले न रात,ऊर्जा ही ऊर्जा भरें। पाएं फिर सौगात,बाधा से कभी न डरें।। चाहत की हो साथ,फिर तो आगे ही बढ़ें। रहे मजबूत हाथ,काम सब सम्भव करें।। रहें सदा चट्टान,मंजिल छूटे मत कभी। रखें बनाए शान,लेते रहिए तब मजा।। उसे कर बेनकाब,भ्रष्ट लोग जो है यहां। खुद बनकर नव आब,करें सुगंधित ये जहां।। जिन्दा हो तो यार,मिलने आया ही करो। भूल सभी तकरार,बाहों में आओ भरो।। कायम रहे वसूल,सीखे दुनियाँ भी यही। जीने का जो मूल,खुशियों में हरदम रखे।। आए जो नित काम,अपना है बस वही। और मिले आराम,सखा ऐसा सदा रखें।। दे दे यहां सकून,करे दुनियाँ याद सदा। रखें गर्म जो खून,शैतान उसे कुछ न करे।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....