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भूख में गरीबी

अनिल कुमार केसरी 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बेहाल गरीबी 11044 0 Hindi :: हिंदी

भूख में गरीबी

सिर छिपाने को छत नहीं,
पेटभर खाने को निवाला कहाँ ?
सर्दी भी आ गई सताने,
सूरज ठंड़ से क्यों घबरा रहा ?
किटकिटा रहे दाँत,
गरीबी का नंगा बदन ठंड़ से काँपता।
गरीब के झोपड़े में,
आजकल कौन आकर है झाँकता ?
बस, आग का सहारा,
सुलगकर, रातभर तसल्ली देता रहा।
सुबह सूरज के उठने के बाद,
भूख में गरीबी की बद्दुआ लेता रहा।
गरीबी से ज़िंदगी की जंग,
अनंत काल से मौत जीतती आ रही।
'सपनों की रोटी' भूख में,
गरीबी को ज़िंदगी जीना सीखा रही।
तड़पकर बेघर गरीबी,
सर्दी की सारी ठिठुरन सह जाती।
रातों में नंगी ठिठुरती गरीबी,
ज़िंदगी की कड़वी कहानियाँ कह जाती...।




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