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बचपन की दोस्त

shivam ratna verma 30 Mar 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत कहानी ,बचपन की दोस्त, प्यार मोह्हबत 18689 0 Hindi :: हिंदी

                     
                                                                                                "बचपन की दोस्त

सोनू अपने एक रिश्तेदार की शादी में गया था। उस वक्त  सोनू पंद्रह वर्ष  का था उसकी मुलाकात एक खूबसूरत लड़की से होती है उस लड़की का नाम शिवानी था  सोनू और शिवानी की गहरी दोस्ती हो जाती है शिवानी सोनू को अपना गांव दिखाने ले जाती है वह कहती है चलो आज आज मैं तुम्हे अपना गावं दिखाउंगी |क्या तुम मेरा गावं देखोगे सोनू बोला हा देखूंगा, तो दोनों गांव देखने जाते है सबसे पहले शिवानी सोनू को अपना खेत दिखाती है, फिर उसे गांव का मंदिर दिखाया जंहा गांव के सारे लोग शाम को पूजा करने आते है, सोनू को गान का तालाब दिखाया जहां गांव वाले अपने पशुओं को नहलाते है, सानू ने गांव का स्कूल भी देखा जो गांव के ऊंचे टीले पर बना हुआ था उस स्कूल के बच्चों के साथ सोनू ने खूब खेला और मस्ती करता उसी स्कूल में शिवानी भी अतिथि और छुट्टी के समय स्कूल के बच्चों के साथ दोनों ने रास्ते में बेर खाए और मस्ती करते हुए घर आए शाम का वक्त हो चला था और दावत भी शुरू हो गई थी दोनों ने साथ-साथ खाना खाया साथ साथ खेले दोनो शादी में बज रहे गाने पर खूब नाचे खूब मस्ती की और पूरी शादी ने खूब मजा किया रात हुई दोनों हो गए और इस वक्त शादी भी हो जाती है और शादी होने के बाद अब सुबह सुबह लड़की की विदाई हो जाती है विदाई के बाद सभी रिश्तेदार अपने-अपने घर जाने की तैयारियां करने लगते हैं शिवानी और सोनू दोनों अपनी दोस्ती बहुत मत थे देर में सोनू की मां की आवाज आती है सोनू सोनू कहां चला गया यह लड़का यह कहते हुए उसकी मां उसे इधर-उधर ढूंढती है सोनी सोनू अपनी मां की आवाज सुन लेता है और चलते नीचे उतर आता है पर भागते हुए अपनी मां के पास पहुंचा है सोनू कैसा है क्या हुआ मम्मी मुझे क्यों बुला रही थी मम्मी कहती हैं अपने घर चलना है कई खेलने मत निकल  जाना यह संत ही सोनू मायूस उदास पढ़ जाता है और भागते हुए खेतों की और जाता है जहां शिवानी अपनी बकरी याचना रही होती है वहीं वे क्रिकेट भी कीर्ति हैं क्रिकेट खेलने का बहुत शौक इतनी इतना अच्छा करके खेलती थी कुछ कहना नहीं सोनू शिवानी को बताता है कि मैं अपने घर जा रहा हूं हरि दोस्ती हो गई थी शिवानी भी काश हो जाती है दोनों कैसे घर आए और बकरियां भी लाइन सोनू की मां घर जाने की तैयारी कर रही थी देखकर दोनों उदास महसूस करते हैं सोनू के चेहरे पे मायूसी होती है सोनू का घर जाने का तो बिल्कुल मन ही नहीं था से उसके साथ बहुत अच्छा लगने लगा था मनु ऐसा लगता था कि शायद बचपन से रह रहे हो और गांव के बच्चों के साथ री बहुत गुल मिल गया था लेकिन क्या किया जाए घर तो जाना ही पड़ेगा और तैयारी भी हो चुकी थी रेल शाम 4:55 की थी गाड़ी आने का समय नजदीक आता चाह रहा था जैसे जैसे रेलगाड़ी आने का समय हो रहा था वैसे वैसे हम दोनों की मायूस था बढ़ती जा रही थी लेकिन तैयारी भी पूरी हो चुकी थी शिवानी और उसके घर वाले हम लोगों को स्टेशन छोड़ने आए थे शिवानी गांव के दुकान से मेरी लिए एक एक तोहफा लेकर आई थी और बोली इस पेन को तब इस्तमाल करना जो हम दोनों दुबारा मिलेंगे हम दोनों ने एक दूसरे से दुबारा मिलने का वादा किया इतने में रेलगाड़ी का हॉर्न बताएं और रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म की और बढ़ती हुई आ जाती है रेलगाड़ी से कुछ सवालों का उतरना पर कुछ का चढ़ना होता है पहले मेरी मम्मी गाड़ी में चढ़ती हैं सर पापा और सर मैं मैं जो चल रहा था तो वाकई में बहुत बुरा लग रहा था ऐसा लग रहा था कि कुछ पेन क्या एक दिन और रुकता । मैं जाकर खिड़की के किनारे वाली सीट पर बैठ गया और शिवानी को देखने लगा मैंने उसकी आंखों मैं देखा तो उसकी आंखें भर आई थी। वह मुझे अपना हाथ हिला कर तब तक अलविदा करती रही जब तक प्लेटफार्म ना छूट गया मैं भी बहुत देर तक अपना हाथ खिलाता रहा,   और  उसने तोहफे में मुझे जो पेन दिया था वह इतने सालों से आज भी मेरे पास सलामत है और इंतजार कर रहा है कि कब उस लड़की से मुलाकात होगी इनकी और कब मुझे किसी पुस्तक से रूबरू होने का मौका मिलेगा वह कलम भी आज भी कोरी रखी है मेरे पास और अब न जाने कब उससे मिलने का मौका मिले 








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