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एक आखेटक की कहानी

भूपेंद्र सिंह 20 Jan 2024 कहानियाँ दुःखद शिकार, आखेट , एक दुखद कहानी, सेना, 1954 0 Hindi :: हिंदी

कहानी
      एक आखेटक की कहानी

गजब हो गया। जी हां आपने बिलकुल सही सुना। सच में ही गजब हो गया.........।।
तमिलनाडु के समीपवर्ती राज्य के वनों में कुछ गजब हो गया। ये बात लंबे अरसे तक लोगों के लिए गहन आश्चर्य का विषय बनी रही।
केरला के वन की नदी की तीक्ष्ण और प्रबल प्रवाह धारा के समीप सेना की एक टुकड़ी शोध और प्रशिक्षण कार्य के लिए रुक गई और आराम फरमाने लगी। दरअसल यह दुश्मन देश की सेना है जिसका उद्देश्य भारत के गुप्त बमों , मिसाइलों , परमाणु बम तथा अत्यादुनिक हथियारों का पता लगाना है और मौका मिलते ही उन्हें नष्ट करना, नष्ट न कर पाने पर अपने साथ चुरा ले जाना है। लगभग दस दुश्मनों की टुकड़ी है। गिनने में तो दस ही हैं लेकिन देखने पर कुछ ज्यादा ही सिद्ध होते हैं यही वहम है। केरला का यह वन जितना भयग्रस्त है उतना ही आध्यात्मिक भी है। राजा दशरथ के पुत्र ने भी वनवास स्वरूप इन वनों का आश्रय ही उचित समझा था।
दुश्मन देश की टुकड़ी का मोर्चा संभालने वाला , उनकी उम्मीद और उनके लिए जीत की पहली किरण उनका मार्गदर्शक सर कालिया  वेंक्टरमैन है और इस टुकड़ी की दूसरी उम्मीद सर जॉर्ज छिपकली है। 
सब दुश्मन पेड़ों के साए में लेटे हरामियों सा आनंद ले रहे हैं। तभी सर कालिया वेक्ट्रमैन का माइंड अचानक से बल्ब की तरह जल उठता है और वो तेजी से खड़ा होकर अपनी दुश्मनों की टीम को उनका उद्देश्य याद दिलाता है और जोर से चीखते हुए बोलता है ताकि उसका गला फट जाए " हमारा पहला उद्देश्य जहां से सीधे ही बंबई में बॉम्ब विस्फोट कर लोगों को मौत की नींद सुला हमारे ओनर से ढेर सारी शबासी ग्रहण करना है और दूसरा टारगेट पोकरण में घुसकर गुप्त हथियारों पर हाथ मार वहां से नौ दो गयारह होना है।"
सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन इनका पूरा नाम है और ये पलटन का जाना माना कुख्यात कैप्टन है।  वह पहले भी इन कुख्यात कार्यों में सफल हो अपने लीडर के हाथों गले में अनेक मालाएं ग्रहण कर शबासियां ले चुका है।
सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन की बात सुन कर उनके सारे चुगलखोर चुपचाप हां में सिर हिला डालते हैं।
लेकिन सर जॉर्ज छिपकली के मन में कोई नहीं खिचड़ी पकती है और वो बोल डालता है " लेकिन सर केकड़ा जी इस भयानक और कुख्यात जंगल में कई प्रकार के जंगली जानवर हो सकते हैं जो की शोध कार्य और गुप्तचरों में बाधा डालने के लिए उतरदायी है।"
सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन - " इस जंगल के अलावा छिपकर बंबई पहुंचने का और कोई रास्ता नजर नहीं आता। खतरा तो मोल लेना ही पड़ेगा। इसलिए हमें हर कदम कदम पर सावधानी बरतनी होगी वरना हमारे  यहीं प्राण पखेरू उड़ जायेंगे।"
सारे अनुचर चुपचाप हां में सिर हिला वहां से फारिग होते हैं।

इसी जंगल के बीचोबीच एक झोंपड़ी नजर आती है। इस झोंपड़ी में फिलहाल दो लोगों का जिक्र करना मुनासिब समझ आता है। एक है मनमोहन आखेटक और दूसरी उसकी मां करुणावती नजर आती है। 
मनमोहन आखेटक अपने कंधे पर धुनूष बाण टांग, पैरों में लकड़ी की जूतियां पहन , अर्धनंगा शरीर और दिल में कोई बढ़ा शिकार करने की उम्मीद लेकर टूटी फूटी झोंपड़ी से बाहर निकलता है और बाहर बैठी बूढ़ी मां करुणावती के सामने करुण स्वर ने बोलता है " मैं आखेट के लिए जा रहा हूं । दिन का तीसरा पहर आने को आ गया है। अब घर में रुकना हर हाल में मुनासिब नहीं लगता और मां आप जरा सावधानी बरतना, आजकल जंगल में बाहरी लोगों का प्रस्थान कार्यरत है।"
करुणावती चुपचाप हां में सिर हिला सर नीचा कर हाथ में लिए हुए कपड़े को जिस पर सुई से वो लगातार कोई कलाकारी किए जा रही है को देखते हुए करुण स्वर मे बोल डालती है " जरा ध्यान से जाना बेटा और अपना ख्याल रखना।"
मनमोहन आखेटक चुपचाप वहां से फारिग हो गया। आखेटक आखेट के उद्देश्य से नदी की तिष्ण धारा के समीप पहुंच जाता है और चारों और तेजी से नज़र दौड़ा किसी शिकार को ढूंढने लग जाता है। उसकी दृष्टि यकायक सेना की टुकड़ी पर जाकर ठहर जाती है और कई देर तक उसकी नजरें अपलक रहकर शांति पाती है। सेना की टुकड़ी में भयानक आधुनिक हथियार देख मनमोहन आखेटक भय के दरिया में डूब जाता है व कुछ कंटीली सी झाड़ियों के पीछे लंपट होकर अपने दिल को तेज धड़कने से रोकता है और उसे सामान्य दशा में लाने की कोशिश करता है जिसमे वो असफल होकर हार की माला अपने गले में डाल चुप रह जाता है। 
सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन फिर से जोर देते हुए बोलता है " अरे मूर्खों कुछ तेज चलो। मुझे खुद को तुम्हारा गाइड कहते हुए लज्जा महसूस होती है। जल्दी चलो आज ही हमें हर हाल में बंबई घुस बम विस्फोट कर कुछ लोगों को शांति प्रदान करनी है।"
लेकिन वेंकटरमन की ये बात हवा के साथ उड़ते हुए मनमोहन आखेतक के कान में प्रवेश करती है। आखेटक ये बात सुनकर मर्नासन की स्थिति में पहुंच जाता है। हालांकि उसे मालूम तो नहीं था की बंबई क्या है? लेकिन इतना समझ में आ गया था की कुछ निर्दोषों का खून निकलने वाला है। बंबई में न जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतरना पड़ेगा। आखेटक ने सोचा की वह इन खूनी दुश्मनों को मार गिराएगा और धरती मां के चरणों में पवित्र स्थान ग्रहण करेगा। लेकिन वो इन सबको मारेगा कैसे? सेना की टुकड़ी में दस व्यक्ति है और जहां तक एक व्यक्ति शरीर देख दस के बराबर सिद्ध होता है। मनमोहन आखेटक ने अपने शरीर पर नजर दौड़ाई कहां पर वो दुबला पतला, छिपकली की तरह सिकुड़ा हुआ, हाथ में तीर कमान साधे हुए, बिलकुल एकांत , घर में बूढ़ी मां उसका इंतजार करते हुए। कुछ समझ में आते नहीं बनता की क्या किया जाए और क्या न किया जाए? लेकिन अचानक से वो सोचता है की बॉडी मायने नहीं रखती , व्यक्ति का जुनून , जोश , और बदले की आग मायने रखती है।
अचानक से नदी की दूसरी तरफ एक मोटी खाल वाला एक हिरण नजर आता है जो उसके जुनून को जल्द ही तोड़ उसकी आंखो में एक लालसा भर घास खाने लगता है। मनमोहन आखेटक के हाथ शिकार करने के लिए ललचा रहे हैं लेकिन दूसरी और नज़र दौड़ाते ही उसे कुछ स्मरण हो आता है। अब उसके सामने दो पथ है लेकिन वो एक ही चुन सकता है टुकड़ी को रोकना या फिर अपना शिकार मोटी चमड़ी का हिरण जो शायद उसे बाद में कभी नसीब न हो। वो आंखे बंद कर एक गहरी लंबी आरामदायक सांस ग्रहण करता है और अपना पथ चुन लेता है।
वह छलांग लगा एक विशालकाय रेडवुड पर चढ़ जाता है और तीर कमान निकाल निशाना साधने की फिराक में लग जाता है लेकिन किस पर हिरण या दुश्मन जासूस पर। लाख सोचने पर भी ये बात समझ में आते नहीं बनती।  उसने निशाना साधा दो तीर छोड़े और दो खत्म फायदा हुआ तो नुकसान भी।
फायदा ये की अब सिर्फ आठ हैं और नुकसान ये की अब सेना ने अपने कान खोल चारों और तेजी से नजरे दौड़ा दी है मगर जो बंदा पिछले बीस साल से जंगल में घूम कोने कोने से वाकिफ हो चुका है अब उसे बाज सी नजरे दौड़ा भी ढूंढ पाना हर हाल में मुनासिब नहीं। सेना के कान उल्लू की तरह खुलने पर अब आखेटक के लिए निशाना लगाना हर हाल में संभव नहीं। उधर सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन और सर जॉर्ज छिपकली का दिल बाहर आने को तैयार हो गया है की कहीं उनकी गर्दन पर कोई तीर न आ लगे और इधर मनमोहन आखेटक थर थर कांप रहा है की कहीं  सेना की नजर उस पर चार न हो जाए।
सर जॉर्ज छिपकली के समझ में नहीं आ रहा है की कौन कमबखत तीरे चला लौड़ियों सी छिपा छिपाई खेल रहा है।
आखेटक सीने पर काबू पा पेड़ पर छिपा रहा ऊपर से उसे सिर्फ कालिया केकड़ा का टकला सर नजर आ रहा है जिसे देखकर उसका मन तबला बजाने को कर रहा है।।
सेना की नजर हर हाल में आखेटक पर जाकर न टिक सकी। 
मनमोहन आखेटक ने एक लंबी सांस भरी और प्रभु श्री राम का नाम लेते हुए दो तीर और चला दिए और दूसरे पेड़ पर जा कूदा। इससे पहले की सेना की टुकड़ी होश संभाल पाती आखेटक ने दो तीन तीर और दे मारे और तीसरे पेड़ पर किसी बंदर की तरह जा कूदा। चार से पांच जासूसों की कब्र तैयार हो चुकी थी और साथ ही पूरी टुकड़ी बिखर कर रह गई थी। आखेटक ने मौका पा आरी उठाई और तेजी से एक पेड़ काट उनके ऊपर गिरा दिया। दो तीन जान बचा भागे मगर दो की को इस पकड़म पकड़ाई में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा एक सर कोकरोज को और दूसरा उसका साथी सर गोबर दास।।
पेड़ कटते ही सर कालिया और भी काला और खूंखार हो गया क्योंकि उसे अब ये बखूबी पता चल गया था की उन पर धावा बोलने वाला एक कबीले का आदमी है शायद कोई आखेटक। 
सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन ने तेजी से अपनी पिस्तौल निकाली और इधर मनमोहन आखेटक ने अपनी कमान में हाथ मारा लेकिन सारी तीरे खतम हो चुकी थी और उसके जीने की उम्मीदें भी। इससे पहले की आखेटक संभल पाता या फिर मौका पा कहीं छिप पाता या भाग पाता उससे पहले ही वेक्टरमैन ने एक गोली आखेटक की और दे मारी और गोली उसके कंधे पर जा लगी। आसपास बैठे परिंदों में जोर का शोर मचा दिया। आखेटक की मां करुनावती ये शोर सुनकर चौंक उठी और अपनी जान से भी प्यारी इकलौती औलाद को ढूंढने के लिए जंगल में उसी तरह भाग दौड़ करने लगी जिस तरह रेगिस्तान में पानी की तलाश में कोई प्यासा। मनमोहन आखेटक जख्मी होकर कुछ झाड़ियों के पीछे जा गिरा और दर्द के मारे कराह उठा मुंह से नहीं दिल से। आंखों से आंसू किसी झरने की तरह टपक़ने लगे। आखेटक ने दर्द पर काबू पा पहाड़ी की चोटी की और कूच कर दी लेकिन इस बात से बेखबर की सर कालिया केकड़ा उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा है। पहाड़ी की चोटी पर पहुंच आखेटक ने लकड़ी की टुकड़ी उठा पत्थर से घिसा उसे एक तीर बना नीचे जंगल में मजे से टहल रहे सर छिपकली की गर्दन में घुसा दी और वो वहीं गिर धड़ाम से गिर पड़ा जैसे को कोई बीस मंजिली इमारत गिरती है। आखेटक ने शांति की सांस ली और जैसे ही पीछे घुमा तो सर कालिया केकड़ा ने पिस्तौल की सारी गोली आखेटक के सीने में उतार दी और वो पहाड़ी से नीचे जा गिरा और श्रण भर में ही अल्लाह को प्यारा होकर रह गया। गुप्त संचार तंत्रों की सहायता से जैसे ही ये खबर भारत की मिलिट्री को पता चली तो चंद पलों में ही भारत के वीर जवान वहां पर जा नवाजे और सर कालिया केकड़ा वेंकटरमन जैसे लोगों को गर्दन से जा दबोचा। मां करुणावती अपने बेटे के शव के पास बैठी फूट फुटकर रो रही है। मनमोहन आखेटक को वहीं जंगल में सम्मानजनक समाधी प्रदान की गई और उसकी मां करुणावती को एक प्लॉट अलॉट करके सब सुख सुविधाएं प्रदान की गई।।
लेकिन पाठको ये सवाल मैं आपसे पूछता हूं की क्या पैसे से एक मां के दिल को छला जा सकता है??????

✍️ भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।

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