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मोहब्बत की परख- प्यार के काबिल कौन है

कुमार किशन कीर्ति 13 Aug 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत मोहब्बत,परख,फैसला 13498 0 Hindi :: हिंदी

"मैं राजन के बिना जिंदा नहीं रह सकती हूं, क्योंकि मैं उससे प्यार करती हूं। और,यह मेरा आखिरी फैसला है।"इतना कहने के साथ ही रजनी की आंखें नम हो गईं।मगर,उसके पिता सोहन लाल अपने जिद पर अड़े हुए थे।
फिर रजनी की तरफ क्रोध भरी आंखों से देखते हुए बोले"तब तुम इतना जान लो तुम्हारी शादी वही होगी, जहां मैं चाहता हूं।राजन जैसे भिखारी के घर तुम्हारी शादी करके मैं समाज में अपनी नाक कटवाना नहीं चाहता हूं।"
इतना कहने के साथ ही वह बाहर निकल पड़े।रजनी नम आंखों से अपने पिता को देखती रह गई।आज उसे यह महसूस हुआ की उसके पिता उसकी मोहब्बत से ज्यादा महत्व इज्जत और समाज को देते है।
तभी उसकी मां गायत्री देवी आई।उसे समझाती हुई बोली"सुन रजनी,हमलोग तुम्हारे दुश्मन थोड़े ही है!जो तुम्हारी खुशी देखकर जलेंगे।राजन बेरोजगार और गरीब लड़का है।इसके अलावा,उसका चरित्र भी सही नहीं है।हमलोग जिस लड़के के साथ तुम्हारी शादी की बातें कर रहे हैं।वह प्रशासनिक अधिकारी है,और इसी जिले में पोस्टेड है।"मगर,रजनी की कानों में जूं तक नहीं रेंगी।वह उल्टे ही अपनी मां को समझाती हुई बोली "मां,मुझे नहीं करनी है किसी ऑफिसर से शादी।राजन जैसा है, मैं उसके साथ रह लूंगी।"इतना कहकर वह अपनी कमरे में चली गई।खैर बात आई,चली गई।
बीच में रजनी की शादी की चर्चा नहीं की गई।मगर.....एक सप्ताह बाद एक ऐसा वाकया हुआ,जिसकी कल्पना किसी ने नहीं किया था।
रविवार की सुबह थी।गायत्री देवी रजनी की कमरे की तरफ गई।
देखी तो कमरा खुला था।मगर,रजनी दिखाई नहीं दे रही थी।वह आवाज देती हुई प्रत्येक कमरे में गई।लेकिन रजनी कही भी दिखाई नहीं दी।
यह देखकर गायत्री देवी बरामदे में बैठे हुए अपने पति सोहनलाल के पास जाकर घबराहट के साथ बोली"सुनिए जी,अपनी रजनी दिखाई नहीं दे रही है।क्या आप जानते है?वह कहां गई है?"
यह सुनकर सोहनलाल निश्चिंत होकर बोले "अरे भाई,तुम इतनी परेशान क्यों हो रही हो?कही गई होगी,थोड़ी देर में आ जाएगी।"मगर,गायत्री देवी मन नहीं मान रहा था।
खैर,अपनी अशांत मन को शांत करती हुई वह जैसे ही बरामदे से होती हुई रसोईघर में गई।उनकी नजर सामने रखी गई टेबल पर गई।उस पर एक चिट्ठी रखी गई थी।
यह देखकर गायत्री देवी का दिल धड़का।वह चिट्ठी पढ़ने लगी।उनकी आंखें नम हो गईं।वह अपने पति को बुलाई।आवाज सुनकर सोहनलाल घबराहट के साथ आए।उनको देखकर गायत्री देवी रोती हुई पत्र उनकी तरफ बढ़ा देती है।
पत्र पढ़कर सोहनलाल की आंखें क्रोध से भर गई।इसके साथ ही उनकी भी आंखें नम हो गईं।
उनकी इकलाती पुत्री आज उनकी इज्जत मिट्टी में मिला कर चली गई है।
अब वह किस मुंह से लड़के वालों को जवाब देंगे?समाज को क्या जवाब देंगे?वह कैसे कहेंगे की उनकी लाडली बेटी रजनी उनकी प्रतिष्ठा को खाक में मिलाकर एक गरीब,बेरोजगार लड़के के साथ भाग गई है।
खैर,उन्होंने अपनी पत्नी को देखकर कहा"अब रोने से क्या फायदा?जो होना था,वह हो चुका है।अब यही समझ लो रजनी हमारे लिए मर चुकी है।"इतना कहकर वह गुस्से से बरामदे में चले गए।
दिन गुजरते गए।बात चारों तरफ फैल गई थी।मगर,सोहनलाल से कोई कुछ नहीं कहता था। लड़के वालों ने रिश्ता तोड़ दिया।मजे लेने वाले मजे लेते रहे।मगर,जो सोहनलाल को समझते थे,उन्होंने उनका साथ दिया।
अभी यह जख्म भरा भी नहीं था,एक दिन दोपहर के वक्त किसी ने दरवाजा खटखटाया।गायत्री देवी दरवाजा खोली।यह क्या!उनकी आंखें फटी की फटी रह गई।उनको विश्वास नहीं हो रहा था।सामने उनकी बेटी रजनी खड़ी है।उदास और नम आंखें,दुबला और थका हुआ शरीर। बेढंग कपड़े।लगता ही नहीं था की वह रजनी का शरीर है।
रजनी अंदर आकर अपनी मां के गले लगकर जोर_जोर से रोने लगी।
गायत्री देवी की आंखें नम हो गईं।वह भी रोने लगी।तभी सोहनलाल वहां आ गए।रजनी को देखकर उनकी आंखें क्रोध से भर गई।वह चीखकर बोले"निकल जाओ।मेरे घर से, तुम मेरे साथ मर चुकी हो।हमारी इज्जत को मिट्टी में मिलानेवाली तुम कौन हो?"
रजनी और उसकी मां जैसी ही यह सुनी,तब गायत्री देवी बोली"अब जो हो चुका है।उसे भूल जाइए।इसे अपनी करनी पर पछतावा है।"
मगर,सोहनलाल का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था।रजनी नम से रोती हुई बोली"राजन की मीठी बातों में मैं बहक गई थी।मगर,वह एक शराबी और चरित्रहीन लडका है।जैसे ही हमलोग मंदिर में भागकर शादी किए,उसी रात को राजन अपने दोस्तों के बीच में मुझे जलील कर रहा था,और मुझे बेचने जा रहा था।तब मैं वहां से भागकर अपनी सहेली नीलू के घर आकर रहने लगी।अगर,आपको विश्वास नहीं है तो आप नीलू के घर जाकर पूछ सकते है।"
इतना कहकर वह रोने लगी।सोहनलाल बोले"तुम्हारी जैसी लड़की ही आशिकी के चक्कर में इज्जत का नाश करती है।प्यार करना गलत नहीं है,मगर प्यार के काबिल कौन है?इसकी परख होना चाहिए।"

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