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रिश्तें- वर्षों बाद टूटे हुए रिश्ते फिर से जुड़ रहे थे

कुमार किशन कीर्ति 06 Aug 2023 कहानियाँ समाजिक रिश्ते,सवाल 23916 1 5 Hindi :: हिंदी

वर्षों बाद उस पुराने मकान का दरवाजा खुला देखा,तो में जिज्ञासा,हैरानी और कई प्रकार के सवाल लेकर मैं भी उस पुराने मकान में चला गया।जैसे ही मैं मकान के अंदर गया,मुझे रघु काका दिखाई दिए।
मुझे देखते ही बड़े प्रेम से बोले"आओ राजीव बेटा,कहो कैसे हो?"मैं भी प्रसन्नता के साथ उनके साथ गया,और उनका आशीर्वाद लिया।
फिर मैंने कहा"ठीक हूं काका,परंतु आप इतने वर्षों बाद लौटे है।सब ठीक है ना!"
मेरी बाते सुनकर रघु काका पास ही रखे गए चारपाई पर बैठकर बोले"कहां सब ठीक है राजीव?मेरे नालायक बेटे ने तुम लोगों के साथ जो किया, मैं यहां आकर भी तुम्हारे माता_पिता के सामने कैसे जा पाऊंगा?"
इतना कहने के साथ ही रघु काका के नयन सजल हो गए। मै उनकी शर्मिंदगी और विवशता को समझता था।फिर भी मैं कहा"रघु काका,जो बीत गया है।उसे अब याद करके जख्मों को ताजा करने से क्या फायदा?मेरे मम्मी_पापा उस पुरानी बातों को भूल चुके हैं।"
इतना कहकर मैं चुप हो गया।इसके बाद थोड़ी देर तक वातावरण बिल्कुल शांत हो गया।ऐसा लग रहा था जैसे ना तो मेरे पास शब्द थे कुछ कहने के लिए और ना ही रघु काका के पास शब्द थे अफसोस जताने के लिए।
खैर, मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए पूछा"लगता है रघु काका,आप थोड़ी देर पहले ही आए है?"इस पर रघु काका बोले"हां,अभी तो आया हूं।जैसे ही दरवाजा खोलकर अंदर आया,तब तक तुम अंदर आ गए और थोड़ी देर बाद तुम्हारे शंकर चाचा अपने परिवार के साथ आने वाले हैं।"
"तब तो बहुत ही अच्छी बात है।लेकिन काका, मैं चाहता हूं की अभी आप थके हुए है,और आपको भूख भी लगी हुई होगी।तब_तक आप क्यों ना मेरे घर चलिए और कुछ नाश्ता कर लीजिए।"
मैंने रघु काका की तरफ देखकर कहा।
लेकिन,मेरी बातें सुनकर रघु काका बोले"नहीं बेटा, मै तुम्हारे घर में नहीं जाऊंगा।मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है।"
इतना कहकर उन्होंने अपना सिर नीचे झुका लिया।यह देखकर मुझे भी बड़ी लज्जा आई।फिर मैं उनको जबरदस्ती उठाते हुए बोला"काका,जो बीत गया है।उसे क्यों दुबारा याद कर रहे है।"
लेकिन,काका अपनी जिद पर अड़े हुए थे। अतः, मैंने नाराजगी के साथ कहा"काका,अगर आप मेरे घर नहीं जाएंगे तो मैं कभी आपसे बातें नहीं करूंगा।"
इतना सुनते ही रघु काका तुरंत बोले"नहीं बेटा,यह क्या कह रहे हो?तुम्हारे घर से मेरा आत्मीय संबंध है।ठीक है चलो।"फिर क्या था? मै बड़े ही प्रसन्नता के साथ रघु काका को लेकर अपने घर की तरफ चल पड़ा।
घर पहुंचकर मैंने दरवाजा खटखटाया तो मां दरवाजा खोली।लेकिन,मुझे और रघु काका को देखकर बड़ी ही प्रसन्न हो गई और बोली"इतने वर्षों बाद कैसे आना हुआ?"इसके हम लोग अंदर पहुंचे।फिर रघु काका कुर्सी पर बैठे। मां की बाते सुनकर रघु काका कुछ बोल नहीं पा रहे थे।
ऐसा लग रहा था,मानो धरती फट जाए और रघु काका उसमें समा जाए।
मगर,फिर रघु काका बोले"अब तुझे क्या बताऊं बेटी,तुम तो जानती हो।सारी फसाद की जड़ तो शंकर ही है।तुम्हारा बेटा तो बिल्कुल निर्दोष था,बल्कि शंकर की घड़ी तो चूहों ने इधर_उधर कर दिया था।जब दीपावली की सफाई हो रही थी तो घड़ी मिली। हालांकि, मैंने उसे समझाया भी था,और उस नासमझ ने बेचारे इस राजीव पर चोरी का आरोप लगा दिया।"
इतना कहते ही उनका चेहरा मायूस हो गया।
तभी मां बोली"जाने दीजिए ना।हमलोग उसे भूल चुके हैं।"मां की बात सुनकर रघु काका बोले"बेटी,रिश्तों की डोर बड़ी नाजुक होती है।इसे ताउम्र संभालकर निभाना पड़ता है।यह विश्वास,प्रेम और समर्पण पर टिका होता है।मेरा बेटा शंकर रिश्तों की अहमियत समझने में यहां गलती कर दिया है।"
यह सुनकर मां बोली"मै आपकी बातों को समझ रही हूं।गलती इंसानों से ही होती है।जिस दिन इंसान गलती करना बन्द कर दिया,उसी दिन से वह भगवान बन जाएगा।फिर यह धरती स्वर्ग बन जाएगी।हमलोग इस बार को समझते हैं और यही कारण है की सारी बातों को भुलाकर रिश्तों की डोर हमलोग संभाले हुए हैं।"
मेरी मां की बातों को सुनकर रघु काका की आंखें भर आई।वे मेरी मां की तरफ देखकर बोले"बेटी,तूने मेरा मन हल्का कर दिया है।अपनी भूल का अफसोस शंकर को भी है।खैर,अब हमलोग यही रहेंगे।होली,दीवाली सारे पर्व एक साथ यही मनाएंगे।"इस बार उनके चेहरे पीआर मुस्कुराहट थी।
मां भी प्रसन्न होकर बोली"बेटा,जाओ मार्केट से बढ़िया मिठाई लेकर आओ।तब तक मैं इनके लिए चाय बना रही हूं।"मै भी प्रसन्न होकर मिठाई लाने चल पड़ा,क्योंकि वर्षों बाद टूटे हुए रिश्ते फिर से जुड़ रहे थे।

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Addy Rathore
Addy Rathore जय भोलेनाथ 🙏🙏🙏

8 months ago

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