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Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक पहुंच 18993 0 Hindi :: हिंदी

चांद तू क्या था, क्या हो गया?

भारी- भरकम पेड़, बुढ़िया सरसर सूत कातती।
बैठी बूढ़ी आंखों से, जवां जहां को ताकती।
बच्चों को बहलाती मां, चांद से चांदी मांगती।
बच्चों का खिलौना, परछाईं पतीला झांकती।
बच्चों का चंदा मामा, अब कहां खो गया?
चांद तू क्या था, क्या हो गया?
तेरी देह दूधिया, चमके रात अंधियारी।
चंद्रग्रहण मूषिक विषाण, बड़े बड़ों पर भारी।
मनुष्य का आराध्य, तू देव वह पुजारी।
चंद्रदेव था, दस अश्वों की सवारी।
महिलाओं के मुखड़े को, अपनी उपमा से धो गया।
चांद तू क्या था, क्या हो गया?
न बुढ़िया न सूत, न मामा मनुहार का।
गहरे गह्वर चांद में, ग्रह सौर परिवार का।
न दूधिया देह खुद की, प्रकाश है उधार का।
न देव, न आराध्य, तू ग्रह मनुज अधिकार का।
चंद्रग्रहण, नियति का नियम बो गया।
चांद तू क्या था, क्या हो गया?

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