Shubhashini singh 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद Google /Yahoo/Bing /instagram/Facebook/twitter 24616 0 Hindi :: हिंदी
समझ में नहीं आता आख़िर जिंदगी क्या चाहती है, समझ नहीं आता। कभी लगता है नई शुरुआत करू, तो कभी लगता है सब कुछ खत्म हो गया। कभी लगता है सब साथ है मेरे, तो कभी लगता है अकेली हो गई हूं मै। कभी लगता है सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो कभी लगता है सब कुछ बिखर सा गया जिंदगी में। करू तो करू क्या कुछ समझ में नहीं आता, खुद से लड़ती हूं खुद को समझती हूं। फिर भी डगमगा सी जाती हूं । खुद को अकेला पाकर पागल सी हो जाती हूं। तो कभी हिम्मत भी जुटाती हूं। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की, फिर भी उसी रास्ते पर आकर खड़ी हो जाती हूं । आख़िर जिंदगी क्या चाहती हैं, समझ में नहीं आता......