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Shubhashini singh
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Shubhashini singh
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@ shibhashini-singh
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जय मां दुर्गा
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सुबह अधूरी है जब तक
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मेरा गणित इतना खराब है कि
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ज़िन्दगी की कली
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शहर जैसे
शहर जैसे जहां दिन रात सब बराबर सा लगता हो चारो तरफ रौशनी ही रौशनी सा लगता हो पर हमारे हमारे दिल के कोने में अधियारा सा है शहर जैसे चारो
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रहे आसमान में उड़ते
रहे आसमान में उड़ते मगर कभी किसी को दुख न दिया हां जमी पर आते ही लोग मुझे पिजरे में कैद कर देते है उस चार दिवारी में कैद कर देते है सोभ
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समझ में नहीं आता
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बेटी
बेटी मां बाप की लाड दुलारी बेटी हर आंगन को चहकाने वाली बेटी हर परिस्थिति में साथ निभाने वाली बेटी अपनो के लिए अपनी खुशी कुर्बान करने
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मैंने क्या बिगड़ा था
मैंने क्या बिगड़ा था जो मुझे इस नज़रिए से देखा जाता है मैंने क्या बिगड़ा था क्या ये गलती है मेरी की मै एक गरीब हूं तो क्या मेरी कोई ए
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ज़िन्दगी कहां है तू
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