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आ ओ थोड़ा मिल जाये-गगन में फूल सा खिल जाये

Rupesh Singh Lostom 27 Jun 2023 कविताएँ समाजिक आ ओ थोड़ा मिल जाये 4540 0 Other :: Other

आ ओ थोड़ा मिल जाये 

आ ओ थोड़ा मिल जाये 
गगन में फूल सा खिल जाये 
तोड़ दे जात पात की सदियों से 
जंग लगा अटूट बेड़ियाँ 
आ ओ थोड़ा मिल जाये 

चलो मिल के बनाते हैं 
सिर्फ एक इंसानो की 
जिसमे इंसानियत रह सके 
इंसानो की मानवता वाली दुनिया 
आ ओ थोड़ा मिल जाये 

न बेटियां लाचर रहे
जहा पिता का समान रहे 
न दहेज़ के लोभी 
बस सुदृढ़ समाज रहे 
आ ओ थोड़ा मिल जाये 

जहाँ बाजार भी हो और बिचार भी
पर नारी का निर्विरोध समान हो 
आ ओ थोड़ा मिल जाये 

जहाँ न निगोड़ी कलह की रात हो 
न कोई विग्रह बाली कोई बात हो 
न कोई प्रजा नहीं कोई राजा न रंक हो 
न कोई हालत से लड़ता बिखरता समाज हो 
आ ओ  थोड़ा मिल जाये 

न शादी की रस्मे झूठे वादे न कसमे
मगर प्रेम हो प्रेम हो और सिर्फ प्रेम हो 
आ ओ थोड़ा मिल जाये

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