Sudha Chaudhary 04 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6511 0 Hindi :: हिंदी
एक एक करने से मेरे हुए न ग्यारह। तुम जो पहुंचे पहली बार कौन रहा बेचारा। अपने द्वारा कितनी बार लिख लिख कर मिटाया जितनी बार समय ने चाहा उतने रंग दिखाया । स्वरों की भीड़ में हदय सजा जाता है। देखकर ये दूनी व्यथा नेत्र बहा जाता है। सारे पिछले कर्म भुलाकर तुम मुझमें मिल जाओ। मेरी अंतः पीड़ा को हरो और हर जाओ। जब तक था उल्लास तुम्हें क्या भाया था मौन चलते जीवन पथ पर समझ न आया अपना कौन । आने का क्या साहस था जब थे जाने के आतुर संकट और विषमता में हरदम छोड़ गये तुम चातुर । सुधा चौधरी बस्ती