Vikas Yadav 'UTSAH' 18 Jul 2023 कविताएँ समाजिक विकास यादव 'उत्साह' अग्नि भी शर्मा गई हिन्दी कविता विकास यादव कविता 6729 0 Hindi :: हिंदी
काव्य रचना - अग्नि भी शर्मा गई चार जबाजों को देखा हमने लथ पथ आग बुझा रहे थे, सैकड़ों की भारी भीड़ में मुर्दे रिल्स बना रहे थे। देख पत्रकार महोदय को भीड़ कैमरे पर उमड़ आई, वजह जो पूछा कैसे हुआ सब ने गर्दन खूब चलाई। कुछ चींखे उठी, कुछ पुकार सुनी जब हम फौरन दौड़कर आए मानों जैसे शमशान देखी पर ये किसी ने ना बोला ना ही खोला शर्म का चोला साहब हम ना बुझा रहे थे ना कोई अक्किल लगा रहे थे, कितने जल रहे, कितने मर गए सोशल मीडिया पर दिखा रहे थे। तभी आगमन नेता जी का सुबह सांत्वना फ्रंट पेज पर होता पर हमने ये कहीं ना देखा चार जबाजों का फोटो तक होता। राजनीति के सेतु में दबकर मानो इंसानियत समा गई जबाजों के हौसलों के आगे अग्नि भी शर्मा गई । - विकास यादव 'उत्साह'