Sudha Chaudhary 23 Sep 2023 कविताएँ अन्य 17021 0 Hindi :: हिंदी
जितना तुम घात लगते हो उतना मैं घात लगाऊं क्या जितना तुम साहस करते हो उतना मैं भेद बताऊं क्या। अपने अधिकार से बढ़कर मेरा अधिकार न माना जितना चाहे कोसा पर मान कभी ना बदला भेदक बनाकर अब कोई तुमको ऐसी चुभन लगाऊं क्या। नश्वर यह जीवन सारा फिर भी ज्ञान नहीं हारा क्षण भर की हार नहीं भाती अपना सम्मान तो प्यार मेरे सम्मान की धज्जियां उड़ी तो ऐसा साथ निभाऊं क्या। जैसे कि मोल लिए हो मैं कोई नहीं हूं जाया मेरे मन की अनुभूति संसार तुम्हें न भाया लेकर वह मूल कहानी बाहर अब आ जाऊं क्या। सुधा चौधरी बस्ती