नरेंद्र भाकुनी 20 Feb 2024 कविताएँ समाजिक Loved, India, Britain🇬🇧, south Africa🇿🇦🌍, pak, 2049 0 Hindi :: हिंदी
अपनी यादें.....। आज देखलो दुनियां में कितने वक्त के पहरें है। उन लम्हों से बनी कहानी कुछ उथले कुछ गहरे है। अपनी सीमा से जुड़ा हूं पार करने की हदें हैं। क्या करें जज़्बात सारा सरहदें है, सरहदें है। अपने गावों की जो डोली उस जुबां में मीठी बोली। याद आती हैं हमें है गावों_गावों में जो टोली। पर कहीं अा गया जो झेल ली दुश्मन की गोली। आज कहता पर्वतों से उन हवाओं को बता दो। मै जुदा हूं, मै अलग हूं आज वादा तुम निभा दो। याद आती है जमी की उनको सारा ये जता दो। कोई मुझको ये बता दो सरहदों में भाई_चारा। मै भी खुश हूं, तुम भी खुश हो लगता हैं खुश है मुल्क प्यारा। इस वतन का मै भी हूं, उस वतन तू कहीं है रक्षा करूंगा मै तो इसका लगता कहीं हैं, ये सही है। नरेंद्र भाकुनी