Santosh kumar koli ' अकेला' 29 Nov 2023 कविताएँ समाजिक बादल बरन 12199 0 Hindi :: हिंदी
ये छलियों के छली, ऐयारों के ऐयार। कभी गज, कभी ऊंट, कभी घोटक सह सवार। कभी पौधा, कभी दरख़्त, बिन जड़ आधार। कभी रूई, कभी उलटते, कोह से आकार। कभी फोहा- सा नरम, कभी शिला -सा सबल। कभी कौए -सा काला, कभी बगुले -सा धवल। कभी तीतरपंखी, कभी सतरंगी, कभी ऐरावत सा- बादल। कभी बौछार, कभी मूसलधार, कभी झूठा ज्योतिष, रमल। कभी चलता, कभी दौड़ता, कभी उड़ता है। कभी चमकता, कभी गरजता, कभी बरसता है। कभी शिव- सा तांडव, कभी धरा से मिलता है। कभी घटा की छटा, कभी अदृश्य, कभी प्रकटता है।