कुमार किशन कीर्ति 05 Jun 2023 कविताएँ बाल-साहित्य बचपन, जिंदगी की मोड़,उमंग 9647 0 Hindi :: हिंदी
कभी-कभी मेरा दिल, मुझसे यह कहता है। क्यों मैं युवा हो गया, यह प्रश्न मन में उठता है। वह बचपन ही ठीक था, वह बचपना ही बेहतरीन था। जिंदगी की मोड़ में, वैसा उमंग ही अच्छा था। अब तो जिम्मेदारी की बोझ से कंधे दब गए है। उमंग,और बचपन की खुशियां ये सब ना जाने कहाँ छिप गए है। कभी-कभी यह दिल ढूंढता है, वैसे ही फुरसत के दिन। कभी-कभी यह दिल ढूंढता है, वैसे ही मस्तमौला दोस्तों संग गुजारे हुए दिन। पर,मैं जानता हूँ... कमबख्त!यह बचपन नहीं आएगी। शायद,यह भी मजबूर हालातों की जंजीरों से जकड़ी हुई है। :कुमार किशन कीर्ति