भावना उपाध्याय 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य #satyta 12223 0 Hindi :: हिंदी
बेटी बनकर आई हूं मां बाप के जीवन में, कल बसेरा होगा मेरा किसी और के आंगन में। यही रीत हर बेटी को सिखाई जाती है, कि हर पहलू तेरे जीवन का बसेगा नए आंगन में।। मैं नहीं कर रही, से मैं कर लूंगी कहना सीख गई, ८ बजे उठने वाली घर चलाना सीख गई। न जाने कितने ही उतार चढ़ाव आते हैं बेटी के जीवन में, पर अब सबसे हस्ते हुए मिलना सीख गई।। मायके वाले कहते हैं, तू पराया धन है, ससुराल वाले कहते हैं पराए घर से आई है। ऐ खुदा अब तू ही बता , आखिर तूने बेटियां किस घर के लिए बनाई हैं।