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☝ ब्रह्म से विद्या का है सार... ✍️

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक This poem is a very big quadruped as before, During this, I knows that 37 quadruped is consist. because to describing didn't know that when lines will have happened large but I hopes that as previous to this poem a true knowledge to giving, I am staying able. To this one idom is required before another link that.. " Only a Lion Correctly recognizes the footprint of another Lion. " First of all some element, I says to including this concept that.. Gautam Buddha of describe to get in "Sukh Sagar" and "Manav Sagar" as Ninth incarnation of Lord Vishnu but this is where upto right, I never knows and in some place this is Controversial.But this is right that Buddha did a humanism Lord during this no any doubt.. And Eternal Religion never learns to doing insult of any other to dignity and I believe God of Lord Buddha as every Scholar's openion.. with I does most of reverance from their pillars. Now, We let's go to opinion of "Bharat Jewells" Swami Vivekanand. He says that.. " बुद्ध सर्व प्रथम ऐसे संत्त थें, जीन्होने किसी भी ईश्वर को सांकेत्तीत्त नहीं किया! बल्कि स्वयं के आदर्शों के संग हर मानव को जोड़कर उन्हें श्रेष्ठता ज्ञान मार्ग के द्वारा प्रदान किया!! किन्तु वें सनात्तन धर्म से अलग न रहें और न हीं स्वयं को रखा! उनकि सर्व साध्ना वैदिक अनुसार थी! और ध्यान आराध्य के क्रिया कलाप भी!! स्वामी ज़ी ने कहा कि.. बुद्ध हिन्दु धर्म के अन्धविश्वासों को कोड़े मारने आए थे! उन्हें वास्तविक धर्म शीखलाने के लिए! और मुल सनात्तन धर्म के पथों से अवगत्त कराने के लिए!! बुद्ध का धम्म हिन्दु धर्म के पाखन्डों का सुधार है! बोद्ध धम्म को छोड़ सनात्तन धर्म का मुल आस्तित्व अर्थहिन है, यह ब्राह्मणों के अपने वास्तविक धर्म में पुन: वापसी का एक महान मार्ग प्रस्सत्ती है!! उनहोने यह भी कहा कि बुद्ध को मै भी भगवान मानत्ता हुं! और केवल विश्व ही नही भारत्त के उत्तरी खन्ड मे इन्हें विष्णु का अवत्तरण कुछ हिन्दु मानत्ते है! किन्तु प्रमाणिकत्ता अभी विवादित्त है! " And in Another way with describe to effecting after " Bharat Jewells" Dr. Bhim Rao Ambedkar.. He said that... " A wise man is like a frog,That can't be weighed with a scale, With the understanding of one, The other starts to jumping here and there. " And with this all After kept his openion in this way the first Vice president of India "Bharat Jewells", Radha Krishanan Sarvapalli says that.. " Buddha' savertion to speculation is confined to issue which are irrelevant to hisethical purpose.. And with this, He said.. " Buddha did not accept the view of a personel God, Since such a belief tended to indolence and hypocricy,That ethical life would lose its point. " हां! हां.. And हां... Now all the point of all the scholars this does proved that Gautam Buddha did Eternal religion's Brahaman caste, Koley Linage and from Kshatriya he had been belonged.And his all the tenth pillars of his ideal to consist in Vadas and Puranas. He was only wake up them. To this line is very suitable that.." है विद्या कि अमर कथा और ज्ञान का दाम! ज्ञान है पानी का नीरव ज्ञान साम्य भगवान! " "और ज्ञानी का न जात्त वर्ण सम् आयन सा घुल ज़ाए, त्यों ही धर्म सनात्तन है, सम्त्ता का दृश्य दिखलाए!! " With this all the describing, I am giving bow of all Scholars, Saint and Saze to which have been describing in this poem with Bodhi Dhamm of lot of lot greeting with respect. But, Yes!.. Eternal religion with Hindustan is long live to admiration with every Indian.. I proud to glad that I have an Indian and to this most of proud that, We are Hindu.. Jai Hind.. Jai Bharat... Long Live humanism with his tangibility... ✍️ And by this poem, I have even been tried to shown the Secularism during the humanity and the right concept of Buddha religion according to Excellence Saint Buddha, that.. in this every human of equality is displaced but no insulting of any God. God never says the God of himself according to eternal religion and Buddha deeds is moral. And morality happens the vasel of struggle. And this knows every human and humanism that Lord Buddha was the Statue of Struggle. And their right way did Eternal Religion. To doing wellfare during humanism. Yes! this is right that he had never accepted any costume. i. e, He made him self a System and System of humanity. Than that had the proud of Asian Continent. And with his great preach was never made follower of any other you may made own self ideal with own great deeds. So all the conclusion to says may be us that.. " Dhamm is the religion, and religion is merely the Dhamm of Buddha. " And yes! this is most of remarkable point of this description that.. this poem have shown to the truth way of eternal religion but to hert any religion and their sentiments has not been and will not be of relevance to my motives. I respects everyone's credentials along my path but I am never Subject, I am the object of knowledge. And I believe the owner of knowledge to Lord. And with this love to all of my reader who gives love and bless of my creativity to achieving truth..Your's need is merely daring of my spread of knowledge ..🙏 87878 0 Hindi :: हिंदी

है रविन्द कि कथा सुनहरी, 
गाथा है ज्ञान ऊज्जियालों कि! 
ब्रह्म से विद्या का है सार, 
प्रमार्थ कल्पना वालों कि!! 
                ये कल्प विकल्प पथ का है रथी, 
                अंधियारों में द्विप का नाज़ अज़र! 
                धर्म और धम्म सनात्तन का, 
                दोनो है नाज़ इस वशुधा पर!! 
है कथा छन्द कि शांख लिए, 
कल्याण पथों का आज़ लिए! 
समत्ता है ज्ञान का अमर शुधा, 
मानवत्ता का है त्ताज़ लिए!! 
                    ये त्ताज़ त्याग संत्तो का ज़ीवन, 
                    ईच्छा से जगी कल्पना कि! 
                   फ़िर ब्रह्म ज्ञान कि खोज़ को नीकले, 
                   एक महापुरूष कि निष्ठा कि!! 
कि.. राजा सुद्धोदन राज्य लुम्बीनी (कपिलवस्तु) , 
ज़ो प्राचीन काल मे पाटलीपुत्र रहा! 
और मात्ता महामाया के पुत्र सिद्धारथ, 
का महा ऋषीयों ने था राह गुणा!! 
                    या त्तो महा शाशक या महा पुरूष पथ, 
                    ज्ञान जगाने आऐं हैं! 
                    ये धर्म, कर्म, अहिंसा मे लिप्त, 
                    सत्य मार्ग दिखाने आऐं हैं!! 
महामाया के पश्च महाप्रज़ापत्ती गौत्तमी, 
के आंचल का उनको प्यार मिला!! 
इसके ऐवत्त पर एक नाम था गौत्तम, 
सिद्धारथ स्वामी ने धार लिया!! 
                     गर ब्रह्म नहीं त्तो पड़े वो कैसे? 
                     भाग्य भविष्य कि वाणी में! 
                     गर लेख ना होत्ता सत्य ब्रह्म का, 
                     त्तो मिलत्ता सत्य ब्रह्माणी में? 
अठरह वर्ष कि उम्र में उनका, 
विवाह हुआ संग यशोधरा के! 
और पुत्र हुए राहुल उनके, 
पर मन वंचीत्त यश और गौरव से!! 
                      इक सुबह चले वो शैर को ज़ो, 
                      त्तीन तथ्य उनहें कर दी विचलीत्त! 
                      अर्ध रात्त वो निकले सब छोड़ गृह त्तक, 
                      ज्ञान खोज़ कि मार्ग विकृत्त!! 
वो ध्यान मग्न को रत्तनें कि साध्ना,
शीखें अलार कालाम को गुरू बनाकर के!
कल्प बीत्त गयी न मीली ज्ञान वो दुबले हुए,
अन्न न खा कर के!! 
                      फ़िर चलें गया पथ बोद्धी वृक्ष के नीचे, 
                      पुर्नत्या ध्यान को लगा दिऐं!
                      वर्षों अन्न त्याग करते रहें ध्यान रत्त, 
                      करत्ती विचलीत्त भी दुर्बलता आ कर के!! 
पनघट पे ज़ात्ती कन्यायों का गान, 
जब पड़ा कर्ण प्रभू गौत्तम के! 
कि सूर का समन्वय राखों रे बंसीयां, 
वरना बिगड़ जाय डोर सामंजस्य के!! 
                        लगा सत्य कत्थ्य प्रभू गौत्तम को, 
                        वो मध्यम मार्ग को ग्मन किए! 
                        थोड़ा आहार संग कर्म समन्वय, 
                        कल्पना ने बुद्धी के चर्म को पा ही लिए!! 
पा कर ब्रह्म ज्ञान वो बुद्धी कि, 
गौत्तम से बुद्ध कहलाऐं थे! 
और ब्रह्म देव को स्वर्ग का राजा, 
बुद्ध ने ही बत्तलाऐं थे!! 
                       बोद्धी वृक्ष और स्थान गया, 
                       फ़िर धाम बन गया विद्या का! 
                       सम ज्ञान हो गया आयन(ज़ल) समक्क्ष,
                       पुरूषार्थ बना सतम्भों सा!! 
दस सत्मभ हर वर्ण कि समत्ता,
समरूप ज्ञान सम आयन सा! 
पौरूष से ऊंचा पुरूषार्थ कर्म, 
समरूप चरित्तार्थ नारायण सा!! 
                       दस सत्मभ ही हैं वेदों के, 
                       जो विष्णु ने दशावतार धरें! 
                       ज्ञान है समत्ता का विवेक, 
                       जीवों में शीव का वाश रहें!! 
कोई नहीं..मानत्ता सुर्य, चन्द्र, 
और ज्ञान को सम् प्रकाशवान! 
ईत्तीहासों कि कथा में दबी प्रभा, 
सम्मान सत्य का मुल्यवान!! 
                        हर त्तत्थय मेल हर वर्णों से, 
                        सनात्तन से बोद्ध का ऊदग्म है! 
                        प्रथम है धर्मं शर्णंम् गच्छ्यामीं, 
                        पश्चात् बुद्धम् गच्छ्यषी शर्णंम् उत्तम्म हैं!!
फ़िर दानम् कर्मं दया धर्मनें,
भीक्क्षा सें अह्म मिट जात्ती है! 
पुरूषार्थ प्रथम सर्वोत्तम मानवत्ता, 
सनात्तन धर्म शीखात्ती है!! 
                           तर्हिं मानवत्ता पंथ ग्मन कर, 
                           जीवन है साध्य ईक साधू का! 
                           दया, धर्म, मानवत्ता और ज्ञान प्रम, 
                           बोद्ध भीक्क्षुक बने ज्ञान जीज्ञासू सा!! 
मर्यादा कि है रथी साध्ना, 
साध्य रहीं संग विद्या कि! 
बुद्धी से बुद्ध, विमर्शों से विवेक, 
और ध्यान कर्म है सनात्तन कि!! 
                        गर नहीं मानत्तें ब्रह्म ज्ञान फ़िर, 
                        अंधकार प्रावृत्ती है! 
                        ज़िसने माना वो पा ही लिया, 
                        ओम्कार नाम उत्कृष्टी है!! 
मन मग्न ध्यान करत्ता है नमन, 
आन्नद विवेक सम् विवेकानन्द! 
उपदेश संत्त नीज़ पंथों कों, 
देत्तें थे समानत्ता सम् बुद्ध चरण! 
                     कि.. बुद्ध सतम्भ है प्रम कल्याणी, 
                     पर नहीं ये ज्ञान अलग सनात्तन से! 
                     स्तम्भ पुन: वापिस लाएगी, 
                     सत्य ज्ञान ब्रह्म मन ब्राह्मण के!! 
और मांगन मरण समान है होत्ता, 
हमें गर्व हैं कि हम हिन्दु हैं! 
सम्मान सनात्तन संग धर्म हिन्द का, 
इस पवित्र धरा के बिन्दु हैं!! 
                       विद्या है नहीं प्रमाण बिना, 
                       हमें कुछ भी बत्ता शीखला दिजें!
                       बिन विद्या के है सर्व सत्य, 
                       बिन सत्य के त्तत्थय दिखा दिजें!! 
गर नहीं मानत्तें प्रम पथों को, 
त्तो चर्म में न अधिकार रहा! 
सब कुछ हैं कल्पना दोनो में कल्प है, 
फ़िर अलग कहां संसार रहा!! 
                         है विद्या पथ ज्ञान अज़र, 
                         नि:छलत्ता का ज्ञान प्रमार्थ है! 
                         नीज़ धर्म कि सेवा सम्मान सभी का, 
                         ज्ञानी का ज्ञान ही त्ताकत्त है!! 
हम कलम से विषम को साज़ दियें, 
यें कलम बुद्ध पथ थाम लिए! 
दे नाम ज्ञान को आयन का, 
नर को नारायण का नाज़ दिए!! 
                          पथ ग्मन सनात्तन रथी बड़े, 
                          मानवता के बुद्ध थे सत्ती बड़े! 
                          पर अलग ना धर्म सनात्तन से, 
                          हर शक्स अलग अधुनातन मे!! 
अधुनात्तन पंथ कि दिव्य साध्ना, 
ये विवेक पथ संत्त राह पे चलने वालों कि! 
ज़ी हां! ये है रविन्द कि कथा सुनहरी, 
गाथा है ज्ञान ऊज्जियालों कि!! 
                ज़ीसने है विश्व में ज्ञान भरा, 
                मानवत्ता का सम्मान भरा! 
                सम्मान विवेक, बुद्ध हिन्द के आंगन कि, 
                सम्पुर्ण धरा से पावन कि!! 
जगत्ती है कल्पना समरूप स्वपन, 
फ़िर मार्ग चाह पथ चलत्ती है! 
संघर्ष पथों पर पा पिड़ा,
कलियों कि त्तरह निखरती है!! 
                 अवरोध  के विपरित्त चलत्ता है सत्य, 
                 पा जात्ता है सफ़लत्ता का ऊच्च शीखर!
                 पाहन सम् अदृढ़ सत्यार्थ बने, 
                 त्तब ज्ञान है होत्ता अज़र - अमर!! 
ये है सत्यार्थ अर्थ पुर्ण छबी, 
और चाह धर्म पथ वालों कि! 
कि.. ब्रह्म से विद्या का है सार, 
प्रमार्थ कल्पना वालों कि!! 

कवी   :  अमित्त कुमार प्रशाद...🙏

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