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चक्रव्यूह में अभिमन्यु -चक्रव्यूह में चक्कर काट रहा

Santosh kumar koli ' अकेला' 26 Jul 2023 कविताएँ धार्मिक चक्रव्यूह में अभिमन्यु (भाग 1) 6493 0 Hindi :: हिंदी

महारथी हो रथारूड़, चक्रव्यूह में चक्कर काट रहा।
एक से बढ़कर एक कायर, कपटी, कोई न किसी से घाट रहा।
हिन -हिन करते अश्व, पहिए घरर -घरर करते थे।
सिंह गर्ज, टापों से गर्द, जमी चेहरे नामर्द, कायर नज़र मिलाने से डरते थे।
कर एक -एक को सचेत किया अचेत, कर से छूट कमान व सर रहे।
एक सिंह समक्ष सौ सियार, ठगे से महसूस कर रहे।
कपटी, कायर सोचे मन में, यदि ये आज बच जाएगा।
इतिहास थकेगा हम पर, यह इतिहास रच जाएगा।
इसका वध, दुर्योधन का क़द, सारे युद्ध नियम ताक पर रख दिए।
सारे कायर टूट पड़े, एक साथ वार पर वार किए।
हाथ जोड़ बोला अभिमन्यु, हे आचार्य! आप बल बुद्धि में श्रेष्ठ हैं।
कहां गए वो युद्ध नियम, जो बनाए पितामह ज्येष्ठ हैं?
ये जीत इहलोक की, परलोक बिगाड़ते हैं क्यों?
ये क्षणिक, शूद्र, कायिक जीत, अपना धर्म बिगाड़ते हैं क्यों?
शशि की मसि, कैसे, किस जल से धुल पाएगी?
क्या देंगे जवाब, जब नियति जवाब चाहेगी?
आत्मा धिक्कारेगी, दुनिया नकारेगी भाग कर जाएंगे कहां?
कोई महारथी, कोई महादानी, कोई महा अभिमानी, ठिकाना पाएंगे कहां?
बोला दुर्योधन नहीं आती- पाती, न समर उमर, है शावक गात।
बोला उतान,न मैं डिंभ न बिजूका, मेरी चिंता छोड़ो तात।
सरसर- सरसर बरसे सर, कोई ताज उड़ा, कोई धनुष कटा।
कोई शर कटा, कोई लक्ष्य भटका, कोई गच गात में घुस टूटा

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