Santosh kumar koli ' अकेला' 12 Jun 2023 कविताएँ अन्य दो बात 7209 0 Hindi :: हिंदी
मैंने तो बात की बात कही थी, तूने बात को क्या बात समझ लिया। तूने समझा सो समझा, मैंने तेरे मग़ज़ के मज़मून की, जात को समझ लिया। तुझे गिराने को, मैं गिरकर भी ज़ोर लगाता हूं। तू कितना ही गिरे, मैं ऊपर रहकर भी, नीचे ही पाता हूं। कफ़न, जनाज़ा स्यापा, यह तो तारीख़ी हक़ीक़त है। आदमी मर तो तब ही जाता है, जब वह, दूसरे पर भार बन जाता है।