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दुख के पत्ते गिर जाएंगे-सुख के नीर भी बरसेंगे

Sudha Chaudhary 07 Jul 2023 कविताएँ अन्य 8394 0 Hindi :: हिंदी

दुख के पत्ते गिर जाएंगे
सुख के नीर भी बरसेंगे
जाने वह कौन घड़ी होगी
दोनों एक नए होंगे।

हारे मन को बांध रही हूं
तुममें इनको साध रही हूं
जीवन कब कुछ और कहे
किसको अपना मान रही हूं।

इधर समय ने सब कह डाला
उधर मौन ने जाल बुना है
मेरा धैर्य कहां अब बरसे
सजल ह्रदय भी भार बना है।

कह कह के बहुत समझाया है
मान रहा है कब मन मेरा
जहां मिलन के एक बिंदु है
डाल रही हूं उस पथ फेरा।

हे अश्रु बूंद के अमर तार
तुमसे सर्वस्व हमारा है
भर अपने हृदय कुंज में
बस संसार यहीं से हारा है।


सुधा चौधरी
बस्ती

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