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दुनिया की चाहत-समग्र दुनिया को मैं मेरे जैसा ही देखूं

Santosh kumar koli ' अकेला' 16 Dec 2023 कविताएँ समाजिक दुनिया की चाहत 8796 0 Hindi :: हिंदी

सत्य नहीं, झूठ झुनझुना,
दिल फ़रेब।
ऋजु नहीं,
चाल औरेब।
विषपान,
पीयूष परहेज़।
आडंबर का चोला,
चोर जेब।
मैं दुखी,
वह इतना सुखी!
मैं आकाश- मुखी,
रहे उसकी नज़रें झुकीं,
मैं भी दुखी,
वह भी दुखी।
अहम् की पूर्ति,
चाहे हो दुनिया रुकी।
तेरे जैसा मैं,
रह मेरे जैसा तू।
हम दोनों एक जैसे,
दोनों बोलें गुटरगूं।
विकास में घुटता है दम,
विकास में आती है‌ बू।
समग्र दुनिया को मैं,
मेरे जैसा ही देखूं।

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