DIGVIJAY NATH DUBEY 21 May 2023 कविताएँ समाजिक #दिग्दर्शन 5961 0 Hindi :: हिंदी
चहचहा उठा चारो तरफा टहनी टहनी इतराई है एक घोर अंधेरा खत्म हुआ एक नई रोशनी आई है पूर्व दिशा में लाल रोशनी चमक रही है नए जोश में किरणे बिखरायी है ऐसे जैसे दीपक भरे ओस में धरा से लेकर ऊंचे नभ में दीप्ति का एक रास रचा निर्बल मन के भावुक स्वर में जीने का एक आश बचा मुरझाए थे फूल जो कल तक आज बिखेरे हैं सब कलियां भवरें जगह बदल के फिर से गूंज रहे हैं कलियां कलियां उम्मीद जगा के उठा रणबाकुर अब तो रण में रण जाना है डर भय का अब नाम हटाकर हर शक्श में हिम्मत भर जाना है अन्न उगाने अन्न देवता निकल पड़े हैं हल लेकर नंगे पैरों में सुबह की ओस चूम रही है दल लेकर यही विधा की रौनक है जब जब विपदा आयेगी अमर उजाला तब लेकर नई उम्मीद जगाएगी । कर लो थोड़ा विश्वास समय पर सबकी बारी आएगी अंधकार से कीर्तिमान तक तेरी चिंगारी जायेगी ।। दिग्दर्शन