Abhinav chaturvedi 06 Jan 2024 कविताएँ अन्य @Abhinav chaturvedi #गांव कविता 3101 0 Hindi :: हिंदी
आज सुबह हुआ करता है। कलः भोर हुआ करता था। नाना-नानी के गांवों में एक छोर हुआ करता था। जीवन कटते-कटते चल रहा, मन अटके-अटके कह रहा। मन की सुन लो ओ भाई। वो दौर वापिस ले आओ, उस गांवों मुझे घुमाव।। ×2 पहले सुबह होता था किरणों से। आज सुबह होता मिन्नतों से। नास्ते बासी-पुराने होते हैं। पहले बासी, ताजे होते थे। समय का चक्र बदल रहा है। कोई चक्र उस ओर घुमाओ, वो दौर वापिस ले आओ। उस गांवों मुझे घुमाओ। ×2 पहले हरियाली दिखती थी। आज केवल क्यारी दिखती है। गिनती के पौधों में, जीवन कि न्यारी दिखती है। माना झोंका हवा का आएगा, यादें बिसरी-पुरानी लाएगा। मन तभी कहता है जोरों से, हवा..... वो ही चलाओ, वो दौर वापिस ले आओ। उस गांवों मुझे घुमाओ। ×2 पहले पानी का घड़ा भरता था। तब ठंडे-ताजे होते थे। आज पाप का घड़ा भर रहा है, जो कहते सीधे-सादे होते हैं। उनकी नैया ईश्वर बचाये, जन्म पर दो-चार पेड़ लगाएं। कहें ईश्वर तुम ही बचाव, वो दौर वापिस ले आओ। उस गांव मुझे घुमाओ। ×2