Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक ग़रीब 38893 0 Hindi :: हिंदी
इस मामले में, मैं ग़रीब हूं। मेरे पास, छल-कपट की दुकान नहीं है।। हड़पी हुई, जायदाद भी नहीं है। मेरे पास, बेईमानी की खदान नहीं है। ढोंग- पाखंड की, तीर कमान भी नहीं है। मैं फांकाकशी के, तक़रीब हूं। इस मामले में, मैं ग़रीब हूं। मेरे पास, मतलब का यार व यारी नहीं है। झूठ की, उधारी भी नहीं है। मेरे पास दुनिया है, दुनियादारी नहीं है। बट्टा भिड़ाने की, चिंगारी भी नहीं है। बंद है कपट-कपाट, खुशनसीब हूं। इस मामले में, मैं ग़रीब हूं। मेरी देह काली है, पर काली कमाई नहीं है। बात है, पर बात की चतुराई नहीं है। मेरे पास हाथ है, पर हाथ की सफ़ाई नहीं है। धर्म है, पर धर्म उठाई नहीं है। अकर्मण्य नहीं, कर्म के क़रीब हूं। इस मामले में, मैं ग़रीब हूं। इस मामले में, मैं ग़रीब हूं।