Santosh kumar koli ' अकेला' 02 Apr 2024 कविताएँ समाजिक हुतात्मा अर्द्धांगिनी 2208 0 Hindi :: हिंदी
मन तो मन है, कैसे समझाऊं? आंसू तो आंसू हैं, कैसे मनाऊं? हिय उमड़े हुलाल, कैसे ग़म खाऊं? आंखें सूखी, मन आंसू कैसे छिपाऊं? दिशा, समां सब रो रहे, रो रही धरा की कोख। चरिंदे -परिंदे सब रोए, रोए वृक्ष डूब शोक। मैं खुलके रो भी नहीं सकती, यह कैसी जग रोक? मन के आंसू मन ही पी रहा, करके गहरी ओक। एक आया, कपट काल का झोका। मेरी बिंदी ले गया साथ, नयन कजरा से कर गया धोखा। पत्ता टूटा डाल से, अब आए न मिलन का मोका। सारे प्रेम निछावर, देश प्रेम ही चोखा। आना था नामकरण पर, खुशियों से अटकर। पहले ही आ गए, क़फ़न तिरंगा लिपटकर। मुंह नहीं देखा मुन्ने का, चले गए झिड़ककर। दूध भी नहीं पी रहा मुन्ना, रो रहा चिपटकर। पीठ देखी जाते की, शहीद होने की ख़बर आई। आंसू बहे आंखों से, मन यादों की तानापाई। पर ज्यादा देर रो नहीं सकती, भारत मां की जाई, सरहद पर फिर शीश चढ़ेंगे, मुन्ने की अगवाई।