Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 14373 0 Hindi :: हिंदी
सांस की उलझी डोर है, मन भी हारा हुआ है; होगा यही परिणाम अगर तो फिर अपना शान क्या हो? हे ईश्वर! दे वो शक्ति-की ये जग वरदान सा हो। अपने-अपनो से मिलने में दूरियों को नापते हैं, अपने-सपनो को सिलने से जीवन में ही भागते हैं, हो यही भागम-भाग अगर तो दिन क्या हो? रात क्या हो? हे ईश्वर! दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो। श्वेत-सवेरे के खोज में, रात में ये अंत बना है; साया - छाया है ये ऐसे जैसे रास्ते में रावण खड़ा है; कर दो ये उपकार ऐसा की सवेरा राम सा हो; हे ईश्वर! दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो। मन्दिर से मैं निकला हूँ, तुम मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे से निकलना, मिलकर जोड़ते हैं हाँथ और कहें कि भला हर इंसान का हो; ये जीवन कठिन बहुत है, कर दो कुछ आसान सा हो; हे ईश्वर!दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो।