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कामियाबी मिले संघर्षों को -चच्श्रु सेे शुधा कि धार बहें

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक This poem is the scene of a struggle of describing own happiness to achieve a stage of success. And It is a most powerful inspiration. 81362 0 Hindi :: हिंदी

कामियाबी मिले संघर्षों को, 
चच्श्रु सेे शुधा कि धार बहें! 
सब कुछ लगत्ता मिल गया स्वप्न का, 
अब कुछ भी रहा न बाकिं है!! 
                      करत्ता हि रहां मै अचल प्रत्तिक्क्षा, 
                      परिश्रम और लग्न के पथ - पथ पर! 
                      देखा सम्मान को था मैने, 
                      सवप्न कि सुन्दर बाहों में!! 
यें सम्मान नहीं केवल, 
और न हीं कोई उपहार मिली! 
हैं दुंआं कर्म कि निष्ठा को, 
आदर्श काव्य कि धार मिली!! 
                        है रखें चाह चलत्ता हैं काव्य, 
                        सम्मान ज्ञान फ़ैलानें का, 
                        धरत्ती कि शाख बन पथ - पथ पर, 
                        और चाह ज़गत्त हर्षाने का!! 
है काव्य गुणों कि अचल श्रृंखला, 
त्ताली कि गुंज़ वाह - वाही का! 
और कवी स्वदेश गुण के रक्क्षक, 
सदृश्य है वही सिपाही का!! 
                         नेकि के कर्म हो दिशावान, 
                         मज़ील समक्क्ष भगवान धरें! 
                         जो भटक गयें हम राहों से, 
                         ईश्वर राहें विध्मान करें!! 
गुरू ने कुछ शीखलाया है, 
कुछ मात्त - पित्ता से ज्ञान मिला! 
कुछ बन ईश्वर संघर्ष ने दे - दी, 
और बचा विरासत्त से सम्मान मिला!! 
                          है कुछ भी अलग न अचल ज्ञान का, 
                          त्तजुर्बें ने ज्ञान शिखलाया हैं! 
                          है नमन कलम और मां सरवत्ती, 
                          बस कलम ने साथ निभाया है!! 
है ध्यान ज्ञान वरदान कलम, 
और कलम ही मेरा साथी है! 
कामियाबी हां कामियाबी मिले संघर्षों को, 
चच्श्रु से शुद्धा कि धार बहें!! 
                   है ज्ञान कि पथ बन पार्थ कलम, 
                   और रहीं सुविचार कि झांकि है!
                   सब कुछ लगत्ता मिल गया स्वप्न का, 
                   अब कुछ भी रहा न बाकिं है!! 
Writer : Amit Kumar Prasad..

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