Sudha Chaudhary 04 Aug 2023 कविताएँ दुःखद 8596 2 5 Hindi :: हिंदी
मैं तुम्हें ना कहूं तो किसे हां कहूं। शब्द से भावना निखरते ही नहीं अपनी बातों से तुमसे कहूं क्या कहूं। जब पवन से कहूं ये ना बोले कहीं गंध मादक बनी मेरे जी के लिए सारी दुनिया कहे तो कहूं क्या कहूं। जो गगन से कहूं ये ना बोले कहीं भर के आंखें मुझे देखने ही लगे धरती आतुर उसे देखने के लिए अपनी चाहत को कैसे कहूं क्या कहूं। जो दिन से कहूं ये ना बोले कहीं संध्या बिना वह ही तड़पता मिला मैं छुपी ही रही लाज अपना लिए इतनी पीड़ा हुई अब कहूं क्या कहूं। जो निशा से कहूं वो कुछ ना कहीं उसको दिन के उजाले की चाहत रही उसकी बातों को सुनकर कहूं क्या कहूं वेदना उसकी मुझसे बड़ी है कहीं। मैं तुम्हें न कहूं तो किसे हां कहूं शब्द से भावना निखरते ही नहीं। सुधा चौधरी बस्ती