Suraj pandit 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद Jivan ke Kuchh panne 20869 0 Hindi :: हिंदी
वह नन्हा सा जीव फुलो सी कोमल थी। साथी वह सुख -दुख की प्रेम हृदय में छिपाई थी। क्रीडा करता साथ उसके मुख पर हँसी छाई थी। उसकी क्रीडा यो मानो अमृत की जलधारा थी। फुदक-फुदक कर धुम मचाती क्रीडा में खोए थे । यह काले बादलों की झुंड क्यों यहाँ आए थे? न जाने यह बादल कहाँ से? छाए अब भरे गगन में उसकी यह क्रीडा क्यों रह गई भरी नयन में? वह गंगा की जलधर यूँ क्यों बरस रहे नयन से कहाँ गई उसकी क्रीडा इस भरी गगन से ------ सूरज पंडित