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ख़ौफ़

Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 6074 0 Hindi :: हिंदी

ख़ौफ़ (कविता)

सर्द मौसम था चाँदनी रात थी 
दूर गगन में तारे चमक रहे थे! 
कड़ाके की ठंड से जैसे ठिठूर रहे थे, 
चांद बादलों में बार -बार छिपा जा रहा था! 
जैसे कड़ाके की ठंड से खुद को बचा रहा था, 
हर मोड़ पर आदमियों की एक रैली थी! 
मगर हर तरफ खामोशी सी फैली थी, 
ठंडी हवाएं सर - सर चल रही थी! 
किसी ज़हरीले बिच्छु की तरह जिस्म को डस रही थी, 
आग का साथ था! 
ठंडी हवाओं से लड़ने को आदमियों का काफ़िला तैयार था, 
सब एक टक घड़ी को निहार रहे थे, 
जैसे हो उन्हें किसी का बेसब्री से इंतज़ार ! 
हम तो कड़ाके की ठंड से डर कर, 
घर में बिस्तर में अपने दुबक गए! 
सपनों की निराली दुनिया में भटक गए, 
तभी किसी ने दरवाजे पर दी दस्तक! 
हम चौंके सपनो की दुनिया से हकीकत, मे लौटे
हमने सोचा भला इतनी रात को यह कौन आया! 
हम बिस्तर में से ही बोले कौन है भाई, 
वहाँ से कुछ भी आवाज न आई! 
हमारे दिल की धड़कने बड़ रही थी, 
सांसें ऊपर को चढ़ रही थी, 
कहीं बाहर न हो कोंई लूटेरा! 
यह डर हमें सता रहा था, 
हम थे घर में अकेले, 
यह ख़ौफ़ हमें खा रहा था! 
दरवाजे पर दस्तक बढ़ती जा रही थी, 
हम पूछ रहे थे कौन है भाई! 
मगर वहाँ से कोंई आवाज न आ रही थी, 
यही चुप्पी हमे डरा रही थी! 
हम कुछ हिम्मत जुटा, 
कांपते कदमों से दरवाजे तक पहुंचे! 
और फिर बोले कौन है भाई, 
फिर वहाँ से चुप्पी टूटी!
और ये आवाज आई, 
पहले कुन्डी तो खोलो भाई! 
देखो कौन आया है, 
तुम्हारे लिए खुशियों का पैगाम लाया है! 
हम बोले सुबह अाना 
और ये पैगाम हमको दे जाना, 
वहाँ से ये आवाज आई !
हम समय के पाबन्द है भाई, 
डरो मत कुन्डी खोलो! 
हम तो नई सदी के नए साल है भाई 
नाम - विपिन बंसल

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