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खोल दो वह द्वार-जो प्रतिष्ठा तुमने मिल जाने की है

Sudha Chaudhary 03 Aug 2023 कविताएँ अन्य 10837 0 Hindi :: हिंदी

जो कहना है
अपने मन से तुम्हारे मन तक है।
शिथिल होती हैं इंद्रियां
अंग पुलकित हो रहा संग मुस्कुराने को
नयन कहते हैं दिदृक्षा मिट न जाने को।
तुमको भूलूं तो आंसू 
तुमसे कह दो तो आंसू।
उलझन कहती इसे सुलझाओ
सीमा कहती पार न जाओ।
हर क्षण विवश है
किसी का तो असर है।
बेध कर मन को गए हो
फिर भी क्यों कातर खड़े हो।
जो प्रतिष्ठा तुमने मिल जाने की है
खोल दो वह द्वार जल्दी आने की है।

सुधा चौधरी
बस्ती

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