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किस पथ पर खोलूं नैन-भटक रहा जिस तृष्णा में मन

Sudha Chaudhary 23 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 7283 0 Hindi :: हिंदी

कहां चलूं,कब छूटे रैन
भटक रहा जिस तृष्णा में मन
किस पथ पर खोलूं नैन।
घोर पाप में डूबा है
सृष्टि का तन
अटल सत्य से
भाग रहा है
फिर भी मन।
युगों-युगों से
मिट न सका
क्यों व्यभिचार
शर्म क्यों नहीं
आती ईश्वर
उनको करते अत्याचार।
पथ भ्रष्ट हुए जो लोग
क्या सज़ा मिलेगा?
मानवता की वेदी 
क्या अब नहीं जलेगी?

सुधा चौधरी
बस्ती

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