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कुछ देर ठहर जा

Uday singh kushwah 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत Google/yahoo/bing 80686 0 Hindi :: हिंदी

तुम्हारे हिस्से की वह हरी,पीली, 
लाल, काली,चूड़ियों के वे टुकडे़ 
आज भी रखे है ...!
तुम्हारे लिए...
जिनके लिए तुम लड़जाया करती थीं,
अपने तेज नाखूनों से खरोंच कर
देती थी...!
वो गुडिया जो  तुम्हारी मां ने बनाई थी
नील- पीली छींट की साडी़ से ....
जो तुम्हें बहुत प्यारी थी...
आज भी सभंली रखी है बन्द 
संन्दकुची में तुम्हारे लिए या...
फिर पता नहीं किस लिए..
वो पता है ,लगता है भूल गयीं होगीं
हलकुलिया का स्वाद कच्चे तेल की
खुशबू ,जली अधपकी रोटी....
पता नहीं क्यों, विसुरती नहीं हैं यह यादें...
मैं फैंक देता हूँ, दूर बहुत दूर इन्हे
फिर पता नहीं कैसे उसी संन्दकुची में
बंद मिलती हैं ...एकदम तरोताजा...!
कवि यू.एस.बरी
ग्वालियर ,मध्यप्रदेश

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