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माना पथ दुर्लभ है- पर एक जिगरा क़दम बढ़ाकर तो देखो

Santosh kumar koli ' अकेला' 08 Dec 2023 कविताएँ समाजिक एक क़दम 8038 0 Hindi :: हिंदी

माना पथ दुर्गम है,
माना पथ दुर्लभ है।
पर एक जिगरा क़दम,
बढ़ाकर तो देखो।
तन -मन में निराशा है,
चारों ओर हताशा है।
पर आशा आविर्भूत किरण,
जगाकर तो देखो।
माना घनघोर अंधेरा है,
तमाविष्ट बसेरा है।
पर एक तमहर तीली,
जलाकर तो देखो।
माना ज़िंदगी में ग़म है,
दुख कहां काम है?
पर एक मधुर मुस्कान,
फैलाकर तो देखो।

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