Komal Kumari 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 50871 0 Hindi :: हिंदी
एक बार "मैं" फिर से "मैं " होना चाहती हूं ...ना किसी की अपनी न किसी की पराई होना चाहती हूं.. इन अनजानी राह में खुद का "वजूद" ढूंढना चाहती हूं.. न किसी रिश्ते रिवाजों का कोई बंधन चाहती हूं.. हर बंधन से दूर कही खुद का एक सपना होना चाहती हूं ..हर सवालों का अब "मैं" खुद में ही जवाब होना चाहती हूं.. हां एक बार "मैं" फ़िर से "मैं" होना चाहती हूं..!
#Mujhko pasand hai khud Ko hi padhna ek kitab hai mujhmein Jo mujhe aajmati hai. @ham Apne jivan ka...