Santosh kumar koli ' अकेला' 31 Jan 2024 कविताएँ समाजिक 7240 0 Hindi :: हिंदी
हो कितना ही अंध तमस्, चाहिए एक तीली। दिल चीरने की क्षमता, रखती यह छबीली। होता सोता को, भाती नहीं जोत पीली। अंधेरे को निगल, करेगी उजास में तबदीली। बुझा नहीं सकता, निदांतक एक जोत को। बचा नहीं सकता, निज मौत की मोट को। सह नहीं सकता, एक रश्मि की चोट को, एक किरण रोकती, अंधेरे की होत में होत को। दिलगीर दिल में रखो, एक ज्योतिर्मय किरण। बुझी जलाओ, फिर जलाओ, जलेगी, क्यों क्षिपण? अंधेरे का गला घोटो, यह है क्षणिक छलावरण। तम, तम में सिमटेगा, क्षरण क्षण- क्षण।