Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

मति -भ्रम एक विषधर बीच डगर

Santosh kumar koli ' अकेला' 02 Dec 2023 कविताएँ समाजिक मति -भ्रम 3278 0 Hindi :: हिंदी

एक विषधर,
बीच डगर।
पड़ा,
मेरे सफ़र।
मैं ठिठका, अटका,
देख चट-पट चक्कर।
काला- काला,
स्फीत स्फोटा।
बीच रास्ते,
लोटा -पोटा।
कभी हिले, कभी डुले,
कभी शांत।
हुआ कलेजे पानी,
बोले दांत।
काल ठेठ,
पूंछ लपेट।
है नाग,
या करैत।
मैं संभला,
भजा पति कमला।
धीरे-धीरे,
आगे बढ़ा।
वह अड़ा, अड़ा,
अड़ता रहा।
वह पड़ा- पड़ा,
भ्रम संजनित पड़ा।
नज़दीक से,
जब डाली दृष्टि।
वह थी एक रस्सी,
भ्रम सृष्टि।
सांच कम,
है झूठ प्रक्रम।
हर मनुज,
जीता मति भ्रम।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: