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मय या मयखाना

Dr. Arun Kumar Shastri 24 Apr 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग मेरी तेरी कहानी 5997 0 Hindi :: हिंदी

*मय या मयखाना

कौन कहता है कि मय
मय्यसर नही मय खाने में।
डूबना चाहो उतनी मिलेगी,
उतर कर देखो तहखाने में ।

जज्ब कर लेगा गहरी बातों को
जिसके जज्बात में होगा हुनर।
यूँ तो हमने बहुत देखे है लोग
पकड़ते मछलियाँ उथले पानी में।

कटोरियों में भी चला लिया करते हैं
चलाने वाले जहाज कागज़ के।
तुम कब से करने लगे, परवाह
इन हुस्न वालों की, एय मेरे मियां।

तुम तो तौफ़ीक़ की कद्र करने वाले थे
ये ख़ुशामद, एय हय, कब से करने लगे।
हुस्न वाले शिकायत, कहाँ करने देते हैं
मौका पड़ते ही ख़ुदाया कसम से।
सीधे सीधे ये तो गिरेबां पकड़ लेते हैं

नसीबा रखें सलामत बा खुदा हम सभी को।
जो इनके क़द्र दान भी हैं और निग्ह बान भी 
कसम ख़ुदा की, देखिए हम हुस्न के पेरोकार भी ।
कभी बे-मुरब्बत हुये, करते हैं, कभी प्यार भी 
कैसे कैसे पता चले ओ रब, इनके मिजाज भी 

कौन कहता है कि मय
मय्यसर नही मय खाने में।
डूबना चाहो उतनी मिलेगी,
उतर कर देखो तहखाने में ।

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