DIGVIJAY NATH DUBEY 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Digdarshan 41906 0 Hindi :: हिंदी
मिट्टी से बनकर ही जन्मा, मिट्टी का इंसान है | किस बात की ईर्ष्या. है| और किस बात की माया है| किस बात का लोभ है पगले, किस बात की काया है | जो कुछ तेरे पास पड़ा है| यहीं पड़ा रह जायेगा , खाली हाथ से तू आया था| खाली हाथ ही जायेगा, बहुतों आए वीर धुरंधर, आए करोड़ों धन के स्वामी भुला दिए जाते हैं प्रति पल, बहुत हुए पर्वत के गामी, अगर तुझे इक विश्वव्यापी, नाम उजागर करना है| काम करो कुछ ऐसी हरपल, भूल न पाए विश्व के आमी तेरे शरीर की अस्थि पंजर मिट्टी में मिल जाना है | तू मिट्टी से आया है | तू मिट्टी का इंसान है ।।