Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक नमस्य (नमस्कार योग्य) 21776 0 Hindi :: हिंदी
मैं, हर उस शख़्स को, नमन करता हूं। उस बेटे को, जो बुढ़ापे में, मां-बाप से बतलाता है। उस भाई को, जो भाई को, भाई कहकर बुलाता है। उस पति को, जो पत्नी की, किच-किच को सह जाता है। उस पड़ोसी को, जो पड़ोसी को, समझता व समझाता है। ख़र्चा खुद-खुद का, ऐसी दोस्ती को, मैं वंदन करता हूं। मैं, हर उस शख़्स को, नमन करता हूं। उस संतान को, जो मां-बाप की, छाती नहीं कुटाती है। उस बेटी को, जो मां-बाप की, लाज व नाज़ बचाती है। उस सास-बहू को, जो आपस में, प्यार से बतलाती हैं। उस पत्नी को, जो किच-किच पर, क़ाबू रख पाती है। शक्ति स्वरूपा स्त्री का, मैं समर्थन करता हूं। मैं, हर उस शख़्स को, नमन करता हूं। उस नेता को, जो बिठाकर, पूछता है हाल-चाल। उस चिकित्सक को, जो मरीज़ संग, बन जाता विक्रम-बेताल। उस धर्मगुरु को, जो ढोंग निवारण की, जलाता मशाल। उस अधिकारी को, जो मुखरित मुख में, रखे रसाल। विकास ईर्ष्या का शमन करे, उसका मैं, अभिनंदन करता हूं। मैं, हर उस शख़्स को, नमन करता हूं।