कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 67012 0 Hindi :: हिंदी
उम्र की सीमा नहीं ,है ,किस पार जाना,। कविता कहती है,सफर वहाँ तय हो, सन्नाटा रहित पनघट जिधर हो,। तब कहीं छलके भी तो ,यह आंखों का नीर , व्यर्थ नहीं उपवन में कण ~कण हो,। आह इक डाली ,और फिर वहां के पक्षी ,घौंसले में डुबा सर हो,। यहां नित नयन विचरण करे, यहीं जीवन के पर हो,। यदि हो यह सफर सुहाना,। फिर कविता में प्रभात आए,। फिर कविता में प्रभात आए,,।। कविता पेटशाली
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