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✊ राष्ट्र मेव ज्यत्ते ☝

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is the inspiration of Nationality. And the concept of Nation to development of path. I hope that this will be feel. every citizens of well as before. Jai Hind.. 🙏 82252 0 Hindi :: हिंदी

नदियों कि धार कर रहीं है बन कर, 
दिप्त्ती को दिप्त्त अधुनात्तन में! 
हो रहा नुत्तन है त्तलहट कि धरा, 
पाने वज़ुद हर राहों में!! 
                     हर भाषां - वेश और भुषों सें, 
                     बनत्ता है राष्ट्र का आभुष्ण! 
                    है अमुल्य सम्पदा राष्ट्रवाद कि, 
                    पथ ग्मन ओर राष्ट्र मेव ज्यत्ते!! 
राष्ट्र है गणना जन - गण का विवेक, 
और भारत्त भाग्य विधात्ता है! 
है अखिल पथों का महा पंथ, 
ले राष्ट्र धर्म लहरात्ता है!! 
                    है विज़यी विश्व त्तिरंगा प्यारा, 
                    जिसमें मानव का हास छुपा! 
                    मानवत्ता पथ का महा समर्पण, 
                    स्वाधिन्त्ता का ईत्तीहास छिपा!! 
चल अचल पथें चल अविचल निष्ठा, 
राष्ट्र के पथ चल गौरवमय! 
ज्यों करत्ता कर्म नदियों कि धार, 
होत्ता है अन्त्तत्त: समुन्द्र मे विल्य!! 
                      विकाश गृह का होत्ता है त्तभी,
                      ज़ब हर शक्श नाज़ पर साज़ धरें! 
                      त्यों हिन्द राष्ट्र है गृह समान, 
                      और सभी राज्य गृह के कक्ष हीं हैं!! 
अखंड हिन्द कि धरें कल्पना, 
विकाश राष्ट्र को अर्पण दे! 
पथ मानवत्ता को ग्मन दायीत्व कर, 
सब विकाश राष्ट्र मेव ज्यत्ते!! 
                         राष्ट्र के पथ चल चाह कलम, 
                         राष्ट्र में ऊंचा नाम किया! 
                         हर एक नगर हर एक राज्य से, 
                         जन - गण का नाज़ कहलाया था!! 
कहलाया था, कहलात्ती है, 
सह लाख दु: खों के धारों पर! 
है नमन राज्य का राष्ट्रवाद, 
और नमन राष्ट्र के न्यारों को!! 
                           नर हो त्तो नहीं निराश बनों, 
                           इस वशुधा का अचल विकाश बनों! 
                           जगत्ती का ध्वज़ फ़हराने को, 
                           हिन्द का अटल विश्वाश बनों!! 
बनत्ती हैं बस्त्तियां दौलत्त से, 
और शौहरत्त को चाह बनात्ती है!
करत्तें है कर्म ज़ो राष्ट्र वाद को, 
राष्ट्र उन्हें नहीं भुलात्ती है!! 
                           पथ चल के सफ़ल कर नागरिक्ता ज़ो, 
                           है अमर प्रेम के पन्नों में! 
                           नदियों कि धार कर रहीं है बन कर, 
                           दिप्त्ती को दिप्त्त अधुनात्तन में!! 
एक के करनें से है नहीं,
करत्ता है स्वर्ग गृह कर पालन निज़ भार! 
त्यों हिन्द राष्ट्र हो जाए अखंड, 
हर सदस्य निभाएं जो निज़ दाईत्व भार!! 
                         हर पथ दे कर मानवत्ता ज़ो, 
                         अखंड राष्ट्र का नाज़ धरा! 
                         है नमन साहित्य और नमन सांकृत्ती, 
                         ज़ो अमुल्य सम्पदा भारत्त का!! 
प्रयत्नों को दिशा दें गढ़ें राष्ट्र, 
नायक का कर्म इन चरणों में!
हो रहा नुत्तन है त्तलहट कि धरा, 
पाने वज़ुद हर राहों में!! 

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