संदीप कुमार सिंह 15 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे। 11737 0 Hindi :: हिंदी
आज की दुनियाँ में धोखे बाज कम नहीं, बाहर से दिखे मासूम अंदर वह विष रखे। बातें प्यारी-प्यारी करें और कर लेता वश में, फिर कर देता है अपना बना के मुर्गा सा हलाल। दोष और दोषी है यहां कौन? एक के बाद एक सबको लगा यही रोग। मैं किसी और को धोखा हूं देता, कोई और मुझे भी धोखा है देता। सबसे पहले तो हमें खुद को है सुधारना, फिर लोगों को भी बात यह है बताना। ऐसा मत कर मेरे साथियों कुछ नेकी कर, जग में रह कर कोई बड़ा सा काम कर जा। दीप जलाने के वास्ते तेल चाहिए, दुनियाँ चलाने के वास्ते मेल चाहिए। धोखा मिटाने के वास्ते सबको ज्ञान चाहिए, शरीर को सभ्य बनाने वास्ते सुन्दर परिधान चाहिए। आज इस तरह से जरा आप भी सोचो, ऊर्जावान होकर हम एक हैं जरा यह बोलो। लोभ में आकर मत लूटो अपने ही रूप को, परिणाम से जरा डरो मानवता को मत भूलो। जब हम आए थे था नहीं कुछ भी पास, आज जबकि सारे साधन है हम सब के पास। फिर ये डाह-जलन कहाँ से आ गया? इसका तो नहीं है यहां पर कोई काम। अपने-अपने मेहनत से प्राप्त करते लोग अपना मुकाम, अपने-अपने मेहनत से पाते हैं लोग यहां खुशियाँ। जैसी राह पर हम चलेंगे वैसा ही मंजिल भी होगा। ईमानदारी से अपने जीवन को हम जीते चलें। ना गलत करेंगे ना ही गलत का साथ देंगे, ईमानदारी से देश-धर्म पर हम मर मिटेंगे। क्योंकि अच्छा बन के आते हैं, और अच्छा बनकर ही है जाना भी। आज बढ़ती जनसंख्या और है दैत्य महंगाई, ऊपर से विपदाओं का है आना-जाना लगा। इतना कुछ होते हुए भी हमें चेतना चाहिए, और मोहब्बत से जिन्दगी जीना चाहिए। हम मानव हैं मानवीय गुणों को बढ़ाएंगे, नफरतों को जड़ से जला कर राख कर देंगे। प्यार की इस दुनियाँ को और हसीन बनाएंगे, आने वाले पीढ़ियों के लिए और अद्भुत सजाएंगे। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....