Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक समाज 8754 0 Hindi :: हिंदी
समय से आगे भागना हैं अभी और जागना हैं ! दौड़ के बादल छू लेना हैं अभी एक और आशमा बनाना हैं !! तारों की दुनिया में छा जाना हैं अभी चाँद पे आशियाँ बनाना हैं ! जो मिटा न सके पग का चिन्ह अभी वो चित्र बनाना हैं !! वक्त के चंगुल से थोड़ा वक्त चुराना हैं जो मंजिल तक ले जाएं अभी वो राह बनाना हैं ! जंजीरों में उलझा विमुख समाज जो वस्तियों में विरान पड़ा अभी भूले को राह दिखाना हैं !! पर्वतों सा अटल अंधविश्वाश जो सदियों से इंसानियत लील रहा अभी रौशनी की अलख जगाना हैं समय से आगे भागना हैं अभी और जागना हैं ! पिचाशनी अंधकार जो कालखंड से काल के बादल बन छाया हैं अभी उस भैये को और मिटना हैं समय से आगे भागना हैं अभी और जागना हैं !!