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शांति का फेर

Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक शांति का फेर 82765 0 Hindi :: हिंदी

नहीं मिले चाहे मोती लुटाओ, मिले तो टके की सेर।
किसे, कहां, कैसे मिलेगी, है ये मन का फेर।

एक दौलत की सेज पर, गोली खाकर सोता।
दूजा कांटों की सेज पर, शयन- सागर में लेता गोता।
एक की प्यास, सागर से भी नहीं बुझती।
दूजे को बूंद से भी, तृप्ति मिलती।
वह प्यासा का प्यासा, ये तृप्त मन का शेर।
किसे, कहां, कैसे मिलेगी, है ये मन का फेर।
चिकनी -चुपड़ी देखकर, एक जी ललचाता।
दूजा ठंडा पानी पीता, रूखा- सूखा खाता।
दो आंखें होकर भी, एक होता है अंधा।
परम जोत को देख लेता है, बिन आंखों का बंदा।
एक परम धाम को जाता, दूजा आवागमन का फेर।
किसे, कहां, कैसे मिलेगी, है ये मन का फेर।
सब कुछ होते हुए भी, एक का पेट नहीं भरता।
खुद ही फिरता, खुद ही सबका चरता।
उसकी वही जाने, क्यों हाय- हाय करता।
मन को छोड़, बाहर ढूंढता फिरता।
कह संतोष देर उसके घर, नहीं है अंधेर।
किसे, कहां, कैसे मिलेगी, है ये मन का फेर।
नहीं मिले चाहे मोती लुटाओ, मिले तो टके की सेर।
किसे, कहां, कैसे मिलेगी, है ये मन का फेर।

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